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भाषण: अहमदाबादके समारोह में

माननीय आदि बिल्लोंकी आवश्यकता नहीं है, बल्कि इस समस्त लोकेषणासे ऊपर उठकर काम करनेवाले लोगोंकी आवश्यकता है। लोगोंको इस प्रकारकी शिक्षाकी आवश्यकता है। जिसे पाकर चाहे जो व्यक्ति अपने विचार पूरी स्वतन्त्रतासे व्यक्त कर सके। इस समय हमारे देश में चारों ओर इतना आतंक फैला हुआ है कि हम अपने विचार व्यक्त करनेमें भी अकारण डरते रहते हैं। हमें अब ऐसी शिक्षाकी आवश्यकता है जिससे यह भय नष्ट हो जाये, हमें सच्चा अभय प्राप्त हो। हमें बिल्लोंकी आवश्यकता नहीं है। मैं समझता हूँ कि आप लोगोंको मेरी यह बात बेसुरी लग रही होगी। किन्तु कुछ समय पहले भाई नानालालने मेरे कान में यह बात कही थी: न जाने यहाँके लोगोंको परीक्षा पास करनेके सम्बन्धमें इतना मोह क्यों है? इस सम्बन्धमें मैं तो कुछ कह नहीं सकता; किन्तु क्या आप कुछ नहीं कह सकते? उनके इस कथनके कारण जो इतनी बात कहनी थी, वह मैंने कह दी है। उसमें से जो विचार जिसे उचित लगे उसे वह ग्रहण कर ले और जो व्यर्थ लगे उसे फेंक दे, अथवा उसे इसी जगह छोड़कर चला जाये। मुझे इसमें भी कोई आपत्ति नहीं है। मेरी कामना है कि भाई नानालालको अपने कर्त्तव्यका पालन करनेमें सफलता मिले अर्थात् वे सरकारकी नौकरी ठीक तरहसे बजायें और वे जिन लोगों के ऊपर अधिकारी बनकर जानेवाले हैं उनपर अधिकारीके रूपमें रोब न जमाएँ, बल्कि भ्रातृभावसे काम लें। उन्हें यह समझना चाहिए कि लोग अधिकारियोंके गुलाम नहीं हैं, बल्कि अधिकारी ही जनताके चाकर हैं। प्रभु भाई नानालालको दीर्घायु करे और हम उनसे देश सेवाके जिन कार्योंकी अपेक्षा रखते हैं उसे वे पूरी करें। यदि वे इस अपेक्षाको पूरा करेंगे तो मुझे प्रसन्नता होगी। यदि ऐसा न हो सका और उन्होंने भी अन्य लोगोंकी भाँति आचरण किया तो में उनसे उसका प्रायश्चित्त चाहूँगा और उक्त आचरण किये जानेकी जानकारी होनेपर में भी इस समारोहमें आने और भाषण देनेका प्रायश्चित्त करूँगा। आजीविकाका अच्छा साधन प्राप्त कर लेना हो पर्याप्त नहीं है; हमें भविष्य में बहुत कुछ करना है और इसलिए हमें इस समय ऐसे चरित्रकी, शिक्षणकी और ऐसे लोगोंकी आवश्यकता है जो उस कार्यको सम्पन्न करनेमें सहायक हों।

[गुजरातीसे]
खेड़ा वर्तमान, ८-१२-१९१५