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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

देशसेवा होती ही है, ऐसा भी हमने हमेशा नहीं देखा। हम सब लोग सेवा आयोगमें नहीं जा सकते, और जानेवाले सब देशभक्त ही नहीं होते। हम सब उनके जैसे विद्वान् नहीं हो सकते, और सारे विद्वान् देशसेवक होते हैं ऐसा भी हमारे अनुभवमें नहीं आता। परन्तु हम सब निर्भयता, सत्यपरायणता, धैर्य, नम्रता, न्यायबुद्धि, सरलता, दृढ़ता आदि गुणोंका अपनेमें विकास करके देशके हितमें उनका उपयोग कर सकते हैं। यह धार्मिक वृत्ति है। राजनीतिक जीवनको धर्ममय बनाया जाये, इस महावाक्यका यही अर्थ है। इस तरह आचरण करनेवालेको हमेशा मार्ग सूझेगा। वह स्वर्गीय महात्मा गोखलेकी विरासत में हिस्सेदार होगा। ऐसी निष्ठासे काम करनेवालेको जिन दूसरी विभूतियोंकी आवश्यकता होगी वे उसे प्राप्त होंगी, ऐसा ईश्वरीय वचन है; और महात्मा गोखलेका जीवनइ सका ज्वलन्त प्रमाण है।

[गुजरातीसे]
महात्मा गांधीनी विचारसृष्टि
 

१६४. पत्र: करसनदास चितलियाको

काशीजी
शुक्रवार, फरवरी ४, १९१६

भाई श्री करसनदास,

इसके साथ एक नया लेख[१] लिखकर भेजता हूँ। इससे अधिक या अच्छा लिखनेकी शक्ति फिलहाल तो है नहीं। पिछले लेखसे तो यह अच्छा ही है। मेरी लिखावट पढ़नेमें कठिनाई हो तो नारणदास गांधी अथवा कल्याणदाससे सहायता ले लें। प्रूफ भिजवा देंगे तो संशोधन कर दूँगा। मैं ११ तारीखको सवेरे बम्बई पहुँचूँगा। मैं वहाँ सम्भवतः अहमदाबाद होकर जाऊँगा।

मोहनदासके वन्देमातरम्

[गुजरातीसे]
बापूजीनी शीतल छायामां
 
  1. १. देखिए पिछला शीर्षक।