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भाषण: मद्रासमें ‘स्वदेशी’ पर

मन यह देखकर बहुत दुःखी हुआ कि ये किस तरह हिम्मत हार बैठे हैं और किस तरह कुटुम्बके-कुटुम्ब इस धन्धेको, जो किसी समय बड़ा सम्मानित और तरक्कीपर था, छोड़ बैठे हैं। अगर हम स्वदेशीके सिद्धान्तका पालन करें, तो हमारा और आपका यह कर्त्तव्य होगा कि हम अपने उन पड़ोसियोंकी तलाश करें जो हमारी जरूरतें पूरी कर सकते हैं, और अगर कुछ ऐसे पड़ोसी हैं जिनके पास अच्छे धन्धोंका अभाव है, तो उन्हें सिखायें कि वे किस तरह अच्छा काम करके हमारी आवश्यकताकी पूर्ति कर सकते हैं। यदि ऐसा हो, तो भारतका हर गाँव स्वावलम्बी और स्वयंपूर्ण इकाई बन जायेगा। वह दूसरे गाँवोंसे उन्हीं चीजोंका विनिमय करेगा जो उस जगह पैदा नहीं की जा सकतीं। मुमकिन है, सुननेमें यह सब मूर्खतापूर्ण लगे। तो सुनिए, भारत मूर्खताओंका देश है। क्या यह मूर्खता नहीं है कि जब कोई रहमदिल मुसलमान साफ-सुथरा पानी पिलानेको तत्पर है तब भी प्याससे अपना गला सूखने दिया जाये? किन्तु, हजारों हिन्दू ऐसे हैं जो मरना पसन्द करेंगे, लेकिन किसी मुसलमान गृहस्थका दिया पानी नहीं पियेंगे। ये मूर्ख व्यक्ति, यदि इन्हें एक बार विश्वास दिला दिया जाये कि उनके धर्मका आदेश यह है कि वे भारत में ही बने कपड़े पहनें और भारतमें ही उत्पन्न अन्न खायें तो दूसरा कोई भी, अन्न खाने, दूसरा कोई भी वस्त्र पहननेसे इनकार कर देंगे। लॉर्ड कर्जनने चाय पीनेका फैशन शुरू किया और आज यह हत्यारी बूटी सारे राष्ट्रको निगल लेनेपर उतारू है। यह लाखों स्त्री-पुरुषोंका हाजमा बिगाड़ चुकी है, और उनकी तंगदिलीको बढ़ा रही है। यदि लॉर्ड हार्डिज़ “स्वदेशी” का फैशन चला दें, तो लगभग सारा भारत शपथपूर्वक विदेशी मालका बहिष्कार कर दे। ‘भगवद्गीता’ में एक श्लोक[१]है, जिसका यदि भावानुवाद करें तो अर्थ यह होता है कि जन-समुदाय श्रेष्ठोंका अनुसरण करता है। यदि समाजका विचारवान अंश स्वदेशीका व्रत ले ले तो भले ही प्रारम्भमें लोगोंको काफी परेशानी उठानी पड़े किन्तु यह बुराई आसानीसे दूर की जा सकती है। जीवनके किसी भी क्षेत्रमें हस्तक्षेप मुझे नापसन्द है। उसके सम्बन्धमें ज्यादासे-ज्यादा यही कहा जा सकता है कि दूसरी बुराइयोंकी तुलनामें वह कम बुरी है। फिर भी मैं विदेशी मालपर सख्त प्रतिबन्धक महसूलको सहन करूँगा; बल्कि उसका स्वागत करूँगा―–उसकी वकालत तक करूँगा। नेटाल ब्रिटिश उपनिवेश है। उसने एक-दूसरे ब्रिटिश उपनिवेश मॉरिशसकी चीनीपर महसूल लगाकर अपने चीनी उद्योगकी रक्षा की। ब्रिटेनने भारतपर कर-मुक्त व्यापार लादकर भारतके साथ अन्याय किया है। इससे भले ही उसे जीवन मिला है, किन्तु भारतको तो मृत्यु ही मिली है।

प्रायः कहा जाता है कि भारत आर्थिक क्षेत्रमें ‘स्वदेशी’ का अवलम्बन कर ही नहीं सकता। जो यह आपत्ति उठाते हैं वे ‘स्वदेशी’को जीवनका नियम नहीं मानते। उनके लेखे वह केवल एक देशभक्तिपूर्ण प्रयत्न है और यदि उसमें कुछ ज्यादा आत्म-निग्रह करना पड़े तो उसे छोड़ा भी जा सकता है। जैसा कि ऊपर बताया गया है, ‘स्वदेशी’ एक धार्मिक नियम है और इसका पालन करते हुए किसे क्या शारीरिक

  1. १. यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जनः।
    स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते॥३-२१॥
१३-१५