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भाषण: सोशल सर्विस लीग, मद्रासमें

ज्यादा साफ-सुथरा है। यह, निस्सन्देह, समाज-सेवा संघ द्वारा सम्पादित एक कीर्तिकर कार्य है; और यदि संघ मद्रास [शहर] के भीतरी हिस्सोंमें प्रवेश करके इसी प्रकारका काम करे तो आज मुझे मद्रासमें जो चन्द अरुचिकर चीजें देखनेको मिली हैं, वे जब मैं इस शहरमें दूसरी बार आऊँगा तब नहीं मिलेंगी। (हर्षध्वनि) ये चीजें हमारे सामने एक स्पष्ट समस्याके रूपमें खड़ी हैं और हमें इनका निराकरण करना ही है। जब हमारे अन्त्यज भाइयोंपर समझाने-बुझानेका असर हो सकता है तब हम क्या यह कहें कि तथाकथित उच्चतर वर्गके लोगोंपर इन बातोंका इतना असर नहीं होगा और वे नागरिक जीवन व्यतीत करनेके लिए अपरिहार्य स्वास्थ्य-नियमोंका पालन नहीं कर सकते? हम रोग-संक्रमणसे बचते हुए बहुत कुछ कर सकते हैं; किन्तु ज्यों ही हम भीड़-भाड़से भरी गलियोंमें पहुँच जाते हैं, जहाँ मुश्किलसे साँस लेनेको हवा मिल पाती है, त्योंही जीवनकी स्थिति बदल जाती है। वहाँ हमें एक नये ढंगके नियमोंका पालन करना है, जो वहाँ पहुँचते ही तुरन्त अपना असर डालने लगते हैं। किन्तु, क्या हम ऐसा करते हैं? आज हम मद्रासके, बल्कि निरपवाद रूपसे भारतके प्रत्येक नगरके――केन्द्रस्थ――हिस्सोंको जिस अवस्थामें पाते हैं, उसके लिए नगरपालिकाओंको जिम्मेदार ठहराना बेकार है। संसारकी कोई भी नगरपालिका किसी जन-समुदाय विशेषकी पीढ़ी-दर-पीढ़ी चली आ रही आदतोंपर काबू नहीं पा सकती। यह ऐसा कार्य है जो धैर्यपूर्ण प्रयत्नों और दैवी प्रेरणापर चलनेसे ही सिद्ध हो सकता है। और इन दो सनातन अस्त्रोंके हाथोंमें आ जानेपर भी इसे समाज-सेवा संघ जैसी संस्थाएँ ही सिद्ध कर सकती हैं। हम एक नये जीवन, नये स्वप्नकी अनुभूतिसे स्पन्दित हो रहे हैं और यह हमारे राष्ट्रीय गौरवकी वृद्धि करेगा तथा हमें प्रगतिके पथपर आगे ले जायेगा। यदि हम यह सोचते हों कि इस संघके-जैसे स्वेच्छया प्रयत्नों बिना ही नगरपालिकाएँ बड़े-बड़े नगरोंमें सफाईकी दृष्टिसे सुधार करनेकी समस्या हल कर लेंगी तो यह लगभग बेकार ही है। इसका मतलब यह नहीं कि मैं नगरपालिकाओंको उनके दायित्वोंसे मुक्त किये दे रहा हूँ। इसके बाद भी उनके लिए बहुत कुछ करना शेष रह जाता है। अभी कुछ ही दिन हुए, मुझे बम्बई नगरपालिकाकी कार्रवाईकी रिपोर्ट पढ़कर बड़ा दुःख हुआ। रिपोर्टमें वर्णित शोचनीय तथ्य यह है कि नगरपालिकाने बहुत ही महत्त्वपूर्ण विषयोंकी उपेक्षा करके अपना अधिकांश समय सर्वथा नगण्य बातोंकी चर्चा में लगाया।[१] जबतक स्वयं जनता और भी सुधारकी माँग नहीं करती तबतक नगरपालिकाएँ कुछ खास नहीं कर पायेंगी। भारतकी एक आदर्श रियासतके अधिकारियों तथा अन्य लोगोंकी यह शिकायत थी कि उनके निरन्तर चौकस और प्रयत्नशील रहनेके बावजूद आम जनताको, उसने जो रास्ता अपना रखा है और जो बातें उसके जीवनका अंग बन गई हैं, उनसे विमुख कर पाना सम्भव नहीं हो पा रहा है। फिर भी, उस रियासतमें प्रगतिके स्पष्ट चिह्न दिखाई पड़ते थे और वहाँके दीवानने मुझसे भरोसेके साथ कहा कि यदि समाज-सेवा संघकी मूल्यवान् सहायता प्राप्त नहीं

  1. १. यह वाक्य नटेसन द्वारा प्रकाशित स्पीचेज़ ऐंड राइटिंग्ज़ ऑफ महात्मा गांधीसे लिया गया है।