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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

भावना बनी है तबतक सच्ची उन्नति नहीं होगी, हो ही नहीं सकती। आप जानते हैं कि कांग्रेसके पिछले अधिवेशनमें स्वराज्यके बारेमें एक प्रस्ताव पास किया गया था। इस ध्येयको पानेके लिए आपको, मुझे, हम सभीको काम करना है, उसमें लगे रहना है। उस प्रस्तावके अनुसार कांग्रेस और मुस्लिम लीगकी समितियाँ जल्दी ही एक साथ बैठकर जो उचित समझेंगी, निश्चित करेंगी। किन्तु स्वराज्यकी प्राप्ति इसपर मुनहसिर नहीं है कि वे क्या कहते या करते हैं बल्कि इसपर मुनहसिर है कि हम और आप क्या करते हैं। यहाँ कराचीमें व्यापार ही प्रमुख है; यहाँ बहुतसे बड़े-बड़े व्यापारी हैं। मैं उनसे दो-चार बातें कहना चाहता हूँ। यह समझना गलत है कि व्यापारमें मातृभूमिको सेवा करनेकी गुंजाइश नहीं है। याद रखिए हमारे देशका भला हमारे ही हाथमें है, दूसरोंके हाथमें नहीं; और कुछ मामलोंमें तो पढ़े-लिखे लोगोंसे भी ज्यादा वह व्यापारियोंके हाथमें है, क्योंकि मैं तो बहुत जोरसे ऐसा अनुभव करता हूँ कि हम जबतक ‘स्वदेशी’ को नहीं अपनाते तबतक स्वराज्य नहीं आता। (तालियाँ)। और इस दिशामें भारतीय व्यापारी बहुत कुछ कर सकनेकी हालत हैं। एक समय देशमें ‘स्वदेशी’ की लहर आई। किन्तु मैंने सुना है कि वह आन्दोलन बहुत हदतक इसलिए बैठ गया कि भारतीय व्यापारियोंने विदेशी वस्तुओंको स्वदेशीके नामसे लोगोंके गले मढ़ दिया। भारतीय व्यापारी यदि व्यापारमें सीधे-सच्चे रहें तो वे देशके पुनर्जीवन और उत्थानकी दिशामें बहुत-कुछ कर सकते हैं। इसलिए व्यापारियोंको अपने व्यापार-व्यवहारमें दृढ़ताके साथ जिसे हिन्दू धर्म और मुसलमान ईमान कहते हैं उसका पालन करना चाहिए। तभी भार्त ऊँचा उठेगा। दक्षिण आफ्रिकामें हमारे व्यापारियोंने संघर्ष में मूल्यवान सहयोग दिया; फिर भी कुछ व्यापारी कमजोर पड़ गये, जिससे संघर्ष कुछ थोड़ा लम्बा हो गया। शिक्षित-वर्गका कर्त्तव्य यह है कि वह व्यापारियोंसे और गरीब जनतासे बिना भेदभावके मिले। तभी हम सबके प्रिय उद्देश्यकी दिशामें चलना कम दुःखदायी होगा। (देर तक तालियाँ)।

[अंग्रेजीसे]
स्पीचेज ऐंड राइटिंग्ज ऑफ महात्मा गांधी