पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 13.pdf/२९६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

 

१९०. भाषण: गुरुकुलके पुरस्कार वितरण समारोहमें

मार्च २०, १९१६

मैं देखता हूँ, इन ग्रामीण पाठशालाओंमें शिक्षाका स्तर एक जैसा नहीं है। कुछ तो धनिकोंकी पाठशालाओंके समान ही अच्छा कार्य कर रही हैं, किन्तु कुछमें बहुत ही अपर्याप्त शिक्षा दी जाती है। अछूतोंके प्रति न्याय करनेके लिए हमें अपने बच्चे हरिजनोंकी पाठशालाओंमें भेजने ही चाहिए और ध्यान रखना चाहिए कि उनके शैक्षणिक स्तरमें गिरावट न आने पाये। किन्तु एक बात और है। शिक्षा ऐसी न हो कि वह इन ग्रामीण कार्यकर्त्ताओंको, अस्वास्थ्यकर नगरोंमें खानसामा, कारखानों के मैले-कुचैले मजदूर और निम्न श्रेणीके बाबू या मुन्शी बना दे। उनकी शिक्षा ऐसी हो कि वे अपने पिताओंके पेशे अधिक वैज्ञानिक ढंगसे तथा अधिक कुशलतासे अपना सकें। पाठशालाको ग्रामीण जीवन, ग्रामीण शिल्प, खुली हवा, आजादी तथा अपने लोगोंकी सेवाके प्रति आकर्षण उत्पन्न करना चाहिए।[१]

[अंग्रेजीसे]
वैदिक मैगजीन, अप्रैल-मई, १९१६
 

१९१. भाषण: गुरुकुलके वार्षिक उत्सवमें

मार्च २०, १९१६

गुरुकुल कँगड़ीके वार्षिक उत्सवमें मार्च २०, १९१६ को गांधीजी ने भाषण दिया था; यह उसका उन्होंके द्वारा बादमें तैयार किया हुआ विवरण है:

मैं भाषणका केवल वही अंश यहाँ लिखनेकी बात सोच रहा हूँ जो मेरी रायमें लिखने लायक है। यदि कहीं आवश्यक हुआ तो कुछ जोड़नेकी बात भी सोचता हूँ। स्मरण रहे कि भाषण हिन्दीमें दिया गया था। महात्मा मुन्शीरामजी ने मेरे बच्चोंको दो विभिन्न अवसरोंपर आश्रय दिया और उनके साथ पितृवत् व्यवहार किया, इसलिए मैंने पहले उन्हें धन्यवाद दिया। फिर इस बातकी ओर लोगोंका ध्यान खींचा कि भाषणोंका समय बीत चुका है और कामका समय आ गया है। मैंने यह भी कहा कि मैं आर्य-समाजके प्रति कृतज्ञ हूँ। मैं प्रायः उसके कामोंसे प्रेरणा लेता रहा हूँ। समाजके सदस्योंमें मैंने जबरदस्त आत्मत्यागकी भावना देखी है। अपनी भारत-यात्राके दौरान, मैं ऐसे अनेक आर्य समाजी भाइयोंसे मिला हूँ जो उत्तम देश-सेवा कर रहे हैं। इसलिए मैं महात्माजीका आभारी हूँ कि उन्होंने मुझे आप लोगोंके बीच आनेका अवसर दिया।

  1. १. भाषणका इतना ही अंश उपलब्ध है।