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१९३. पत्र: जे० बी० पेटिटको

मार्च ३०, १९१६

प्रिय श्री पेटिट,

मुझे आपका पत्र और इसके साथ सत्याग्रह संघर्षके खर्चके लिए ६०० रुपयेका चेक मिला। इसके लिए मेरा धन्यवाद स्वीकार करें।

आपने जो विवरण माँगा है, सो साथ में भेज रहा हूँ। यह सूची अन्तिम सूची नहीं है। उदाहरणके लिए विधवाओंको कभी-कभी यात्राका खर्च देना जरूरी हो जाता है। वैसे यह खर्च जरूरी होनेपर ही दिया जाता है। अभी दो ही महीने पहले ऐसा खर्च करना पड़ा था।

इमाम साहबके पिताजीका अभी-अभी देहान्त हो गया है और इसलिए उन्हें ३०० रुपये दिये गये थे। उन्होंने अपना सब कुछ तो खो ही दिया, उनके अबतक के मित्र भी उनसे बहुत नाराज हो गये हैं। फलस्वरूप वे जो व्यापार करते थे, सो खत्म हो गया है। आजकल वे यहाँ रहते हैं। जबतक वे समर्थ नहीं हो जाते, बीच-बीचमें उन्हें मदद देते रहना जरूरी हो सकता है।

मगनलाल गांधी और उसके भाई मेरे भतीजे हैं। वे राष्ट्रीय शिक्षाके लिए मेरी देखरेखमें शिक्षित हो रहे हैं। एक भाई[१] जो मुक्त है, कमा रहा है। किन्तु वह अपने माता-पिताका पूरा बोझ उठानेके लायक नहीं कमा पाता।

मगनभाई पटेलका मामला भी ऐसा ही समझिए। इसके सिवा वह हमेशा बीमार रहता है। फिर सोराबजी अडाजानियाका[२] मामला है। उन्हें एक मित्रसे कुछ मदद मिलती है, किन्तु आकस्मिक परिस्थितियोंके कारण उन्हें कुछ और मददकी, अन्दाजन ५०० रुपये तक, जरूरत पड़ सकती है।

जिन सत्याग्रहियोंके खर्चकी हमें यहाँ व्यवस्था करनी है, उन सभीके नाम ऊपर आ गये हैं। दक्षिण आफ्रिकामें हमें कितने पैसेकी जरूरत पड़ेगी, इसका विवरण मिलते ही ठीक अन्दाज लगाकर मैं आपको सूचित करूँगा।

 
  1. १. नारणदास।
  2. २. सोराबजी शापुरजी अडाजानिया; “पारसी होते हुए भी पूर्णतया भारतीय”; उन्होंने संघर्ष के दूसरे दौरकी नींव रखी और अनेक बार शिक्षित भारतीयोंके अधिकारोंकी जाँच करनेके विचारसे ट्रान्सवालमें प्रवेश किया और सन् १९१८ में सबसे अधिक सजा भोगी। १९०९ में उन्हें निर्वासित भी किया गया। सन् १९१२ में डॉक्टर मेहताके खर्चंपर गांधीजीने उन्हें बैरिस्टरी पढ़नेके लिए इंग्लैंड भेजा। इंग्लैंडर्मे रहते हुए श्री गोखलेने उन्हें भारत सेवक समाज (सवेंटस ऑफ इंडिया सोसाइटी) में सम्मिलित होनेका आमन्त्रण दिया। ट्रान्सवाल लौटकर आनेपर उन्होंने भारतीय समाजके हितमें सार्वजनिक काम किया और जोहानिसबर्ग में ही कम उम्र में उनका देहान्त हो गया।