बेलगाँवमें बुलानेसे सम्बन्धित आपत्तियोंकी निन्दा की और बताया कि सम्मेलनका मुख्य उद्देश्य दो राजनीतिक दलोंको पास-पास लाना है।[१] भारतको स्वराज्य दिया ही जाना चाहिए और सभी वर्गोको सम्मिलित मोर्चा बनाकर यह माँग पेश करनी चाहिए। यदि स्वराज्य मिलता है, तो उसमें किसी एक वर्गकी प्रधानता नहीं होगी। यदि हुई तो वह स्वराज्य नहीं कहला सकेगा। अगर कोई एक दल या वर्ग दूसरोंके सिरपर बैठना चाहता है, तो में स्वयं इसका विरोध करूँगा। मेरे लेखे उच्च और निम्न वर्गमें कोई अन्तर नहीं है। कोई आदमी भंगी या नाई हो जानेसे घृणाका पात्र नहीं हो सकता। और न कोई ब्राह्मण होनेसे आदरका पात्र बन सकता है। उन्होंने कहा कि मेरा धर्म तो मुझे समाज या सम्प्रदायका भेद माने बिना सभी व्यक्तियोंको समान समझनेकी शिक्षा देता है। जबतक हम लोगोंमें इस तरहके अन्तर बने हुए हैं, स्वराज्य नहीं मिल सकता। उन्होंने वचन दिया कि इस तरहके तमाम भेदोंको दूर करनेका वे भरसक प्रयत्न करेंगे।
बॉम्बे सीक्रेट एब्स्ट्रैक्ट्स, पृष्ठ ३३०
१९९. भाषण: बम्बई प्रान्तीय सम्मेलन, बेलगाँवमें[२]
मई १, १९१६
श्री गांधीने हिन्दुस्तानीमें निम्न भाषण दिया:
मैं इस अर्थमें बाहरी आदमी हूँ कि मैं नेशनलिस्ट पार्टी या अन्य किसी दलका सदस्य नहीं हूँ। मेरे मनमें ऐसी कोई इच्छा नहीं है कि मैं भाषण सुनूँ या भाषण दूँ; किन्तु चूँकि में राष्ट्रकी सेवा करना चाहता हूँ, इसीलिए यह अनुभव करता हूँ कि उन समस्त संस्थाओंका, जिन्हें में देख सकूँ, अध्ययन करना मेरा कर्त्तव्य है। इसी कारण मैं बेलगाँवके इस सम्मेलनमें आया हूँ। चूँकि मैं इन दोनों बड़े दलोंमें मेल-मिलापके युगका आरम्भ देखना चाहता था, यहाँ आनेके लिए उत्सुक था। मैं विश्वास करता हूँ कि बेलगाँवमें इन दोनों दलोंमें मेल-मिलाप हो जायेगा। मेरे लिए यह बहुत ही प्रसन्नताकी बात है कि इस सम्मेलनमें ऐक्यकी नींव डाली जा रही है।
- ↑ १. देखिए अगला शीर्षक।
- ↑ २. यह सम्मेलन २९ अप्रैलसे १ मई तक हुआ था और इसमें बम्बई, मध्यप्रान्त और बरारके प्रमुख नेशनलिस्ट आये थे। यह १६ जनवरी १९१६ की पूनाकी उस बैठकके बाद हुआ था जिसमें दो वर्ष पुरानी उन राजनैतिक संस्थाओंके, जो १९१५ में कांग्रेस संविधान में संशोधन होनेके बाद कांग्रेस से स्वतः सम्बद्ध हो जाती थीं, प्रतिनिधियोंकी संख्या के परिसीमन सम्बन्धी प्रश्नका समाधान स्थगित कर दिया गया था।