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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

देनेकी आवश्यकताको तीव्ररूपमें अनुभव करते हैं। मध्य तथा पूर्वी यूरोपके यहूदियोंने, जो संसारके सभी भागोंमें बिखरे हुए हैं, परस्पर बातचीतके लिए एक सामान्य भाषाकी आवश्यकता समझते हुए यीडिशको उन्नत करके उसे भाषाके स्तरपर ला खड़ा किया है और संसारके साहित्य में उपलब्ध सर्वोत्तम पुस्तकोंका अनुवाद सफलतापूर्वक यीडिशमें कर दिया है। वे अपनी आत्माकी साधको, जिन तमाम विदेशी भाषाओंमें वे निष्णात हैं, उनके जरिए, सन्तुष्ट नहीं कर पाते थे। उनमें से जो थोड़ेसे पढ़े-लिखे लोग थे वे भी साधारण यहूदी जनतापर उसे अपने गौरवकी अनुभूति होनेसे पूर्व, किसी विदेशी भाषाको सीखनेका भार डालना नहीं चाहते थे। इसलिए उन्होंने एक ऐसी भाषाको, जो एक समय गँवारू भाषा मानी जाती थी और जिसे यहूदी बच्चे केवल अपनी माताओंसे सीखते थे, विशेष परिश्रम द्वारा संसारके सर्वोत्कृष्ट विचारोंका अनुवाद करके समृद्ध बना लिया है। यह सचमुच ही एक आश्चर्यजनक कार्य है। उन्होंने यह कार्य अपनी वर्तमान पीढ़ीमें ही किया है; वेबस्टरके कोषमें टाल भाषाकी परिभाषा इस प्रकार दी गई है――बहुत-सी भाषाओंके मेलसे बनी एक गँवारू भाषा जिसे विभिन्न राष्ट्रोंके यहूदी परस्पर बातचीतकेलिए उपयोगमें लाते हैं।

किन्तु यदि यहूदियोंकी मातृभाषाकी परिभाषा अब इस प्रकार की जाये तो मध्य तथा पूर्वी यूरोपके यहूदी इसमें अपमानका अनुभव करेंगे। यदि ये यहूदी विद्वान् एक पीढ़ीमें अपने जनसाधारणको एक ऐसी भाषा प्रदान करनेमें सफल हो गये हैं, जिसके लिए वे गौरव अनुभव कर सकते हैं, तो निश्चित रूपसे हमारे लिए अपनी देशी भाषाओंकी आवश्यकता पूरी करना एक आसान काम होगा; क्योंकि वे सुसंस्कृत भाषाएँ हैं। हमें दक्षिण आफ्रिकासे भी यही शिक्षा मिलती है। वहाँ डच भाषाकी अपभ्रंश टाल तथा अंग्रेजीमें संघर्ष था। बोअर स्त्री-पुरुषोंने दृढ़ निश्चय कर लिया था कि वे अपने बच्चोंको, जिनसे वे बचपनमें टालमें बातचीत करते थे, अंग्रेजीके माध्यमसे शिक्षा प्राप्त करनेके बोझसे दबने नहीं देंगे। इस मामलेमें अंग्रेजीका पक्ष मजबूत था, उसके समर्थक योग्य थे, किन्तु अंग्रेजीको बोअरोंके देशप्रेमके सामने झुकना पड़ा। यहाँ इस बातपर ध्यान दिया जाये कि उन्होंने कठिन डच भाषाको भी अस्वीकार कर दिया। इसलिए स्कूलोंके उन अध्यापकोंको, जिन्हें यूरोपकी परिष्कृत डच भाषा बोलनेका अभ्यास है, मजबूर किया जाता है कि वे अपेक्षाकृत सुगम टाल भाषा सिखायें और इस समय दक्षिण आफ्रिकामें टाल भाषामें उत्तम साहित्यकी अभिवृद्धि हो रही है। यह भाषा पहले सीधे-सादे किन्तु बहादुर किसानोंकी परस्पर बोलचालकी भाषा थी। हमारा अपनी देशी भाषाओं के प्रति आश्वस्त न रहना अपने आपमें आश्वस्त न होनेका चिह्न है; और यह हमारी अवनतिका बड़ा पक्का लक्षण है। यदि हम उस भाषाका जिसमें हमारी माताएँ बोलती हैं, आदर नहीं करते तो स्वशासनकी कोई भी योजना हमें स्वशासित राष्ट्र नहीं बना सकती; चाहे यह कितनी ही शुभ भावनासे या उदारतासे लागू क्यों न की जाये।

[अंग्रेजीसे]
लीडर, २५-५-१९१७; रंगून मेलसे उद्धृत