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भाषण: सूरतमें गिरमिट-प्रथापर

शरीरको छोड़ जाये तो परमपदको प्राप्त होगी। परन्तु इस भवनमें उपस्थित ऐसा कौन-सा ज्योतिषी है जो कह सके कि वहाँ हमारी जिन हजारों बहनोंकी नैतिक अधोगति हो रही है उनका क्या होगा। इस रोगकी चिकित्सा हममें से हर एक कर सकता है। इसके लिए हम सबको त्याग करना चाहिए। वाइसरॉय महोदयसे हमें विनयपूर्वक कह देना चाहिए कि ३१ मईके पहले यह स्थिति समाप्त हो जानी चाहिए और आज ही यह संकल्प कर लेना चाहिए कि उस तारीखके पश्चात् स्थिति बर्दाश्तके बाहर हो जायेगी। अब मैं इस प्रकरणको यहीं छोड़ता हूँ।

स्वयंसेवकोंके रूपमें सेनामें भरती होनेके अधिकारके बारेमें मैं अनभिज्ञ हूँ। जब मैंने इस मसलेको पहले-पहल हाथमें लिया तब मुझे समझमें नहीं आता था कि भारतमें भी इस प्रकारका अधिकार क्यों नहीं दिया गया। शायद हम उसके लायक नहीं थे। अब यह अधिकार हमें मिल चुका है। आज भारतका शिक्षित समाज मेरे विचारोंको समझ रहा है। मैं हथियारोंसे किये गये संग्रामके खिलाफ हूँ। उसमें मेरी श्रद्धा नहीं है। अपनी अथवा दूसरोंकी रक्षाके निमित्त शस्त्र धारण करनेसे पूर्णरूपेण रक्षा होना असंभव है। फिर हमारे पास वैसी शक्ति भी नहीं है। मेरी धारणा है कि शस्त्र धारण करके शत्रुसे लोहा लेनेके स्थानपर आत्मिक शक्तिसे काम किया जाना चाहिए। जितना प्रभाव उसका होगा उतना अन्य किसी वस्तुका नहीं। जनरल गॉर्डन एक महान ब्रिटिश योद्धा था। उसका चित्र बनानेवाले चित्रकारकी बहुत अधिक प्रशंसा हुई है। चित्रकारने उस योद्धाको हाथमें तलवार या बन्दूक लिये चित्रित नहीं किया था बल्कि उसके हाथमें केवल छड़ी ही है। मैं तो यहाँ तक कहूँगा कि यदि वह उसे दोनों हाथ जोड़े हुए दिखाता और उसके नेत्रों, ओठों तथा समस्त मुख-मण्डलपर उसने प्रेमकी ज्योति चित्रित की होती, यह भाव प्रदर्शित करनेके लिए कि इस योद्धाको अपने निश्चय से समस्त संसार विचलित नहीं कर सकता, तो उस चित्रसे एक सच्चे क्षत्रियका स्वभाव व्यक्त हो जाता। ये हैं मेरे व्यक्तिगत विचार; परन्तु सबको ये ग्राह्य नहीं हो सकते। बहुतेरे इस खयालको निकम्मा मानते हैं और कुछमें कदाचित् उस विचारको कार्यान्वित करनेकी क्षमता नहीं होती। इसके निमित्त आप लोगोंका कर्त्तव्य है कि [शत्रुके सम्मुख आनेपर पीठ न दें], “अहिंसा परमो धर्मः” कहते हुए उसकी आड़में भाग न खड़े हों।[१] यह बहुत भयंकर दोष माना जायेगा। यदि आपकी इच्छा यह है कि शत्रुका विनाश किसी भी प्रकार हो ही जाये तो आप अहिंसा व्रतका पालन यथार्थ रूपमें नहीं कर रहे हैं, क्योंकि इस व्रतमें भयके मारे भाग जाना आता ही नहीं। भारतीयों में जो लोग यह चाहते हैं कि हम लोगोंकी, हमारी स्त्रियोंकी, नीतिकी, और कोषकी रक्षा होनी चाहिए उनकी रक्षा करना आप सबका ही काम है, उनकी रक्षा अवश्य की जाये। परन्तु कैसे? जिन लोगोंको मेरे प्रिय सिद्धान्तोंमें विश्वास नहीं है, उन्हें हथियारोंसे काम लेना ही चाहिए। यही कारण है कि रंगरूटोंको भरती होनेका जो अधिकार मिल गया है उसका में इस दृष्टिसे स्वागत करता हूँ। यहाँ आये हुए लोगोंसे मैं यही कहूँगा कि आप लोग सेनामें भरती हों। यदि कोई मुझसे यह पूछे कि बताइये

  1. १. यहाँ रिपोर्ट में कुछ त्रुटि है।