२७२. पत्र: मगनलाल गांधीको
मोतीहारी
रविवार [अप्रैल १५, १९१७]
तुम्हें मेरा मुजफ्फरपुरसे लिखा पत्र मिला होगा। अभीतक तो कुछ हुआ नहीं है। मैं मोतीहारी पहुँच गया हूँ। मेरे पत्रके समाचार जिन्हें देने उचित हों, उन्हींको देना। मुझसे कुछ पूछना हो तो पूछ लेना। मुक्त रहा, तो उत्तर दूँगा। जान पड़ता है, यहाँ अधिक ठहरना होगा। तुम सब शान्तचित्त रहना। इसे आश्रमके सब लोगोंको पढ़वा देना।
बापूके आशीर्वाद
गोखलेके भाषणोंका अनुवाद भाई नरहरि कर रहे हैं। भाई गोवड़िया भी उसमें लगे हुए हैं। उनसे पूछना और जल्दी करनेके लिए कहना। छगनलाल इस बारेमें खोज-खबर रखे।
मूल गुजराती पत्रकी हस्तलिखित प्रति (एस० एन० ९८१६) की फोटो-नकलसे।
२७३. पत्र: एस्थर फैरिंगको
मोतीहारी
चम्पारन
अप्रैल १५, १९१७
तुम्हारा स्नेहपूर्ण पत्र आखिर चलते-चलते मेरे पास यहाँ आ ही गया। मैं लगभग हिमालयकी तलहटीमें हूँ। मैं निलहे जमींदारोंके अधीन काम करनेवाले लोगोंकी स्थितिका अध्ययन कर रहा हूँ। मेरा काम अत्यन्त कठिन है। लेकिन मेरा भरोसा ईश्वरमें है। हम तो कर्म ही कर सकते हैं, उसके बाद हमें कोई चिन्ता नहीं करनी रहती।
कुमारी ग्रहमके सम्बन्धमें चिन्ता न करो। उसकी व्यवस्था ऊटीमें हो गई है।
तुम चाहो तो मुझे बापू कह सकती हो। बापूका अर्थ है पिता। आश्रममें यह प्यारका शब्द बन गया है। मैं तुम्हारे प्रेमको, सचमुच, बहुत महत्त्व देता हूँ। तुम अहमदाबादके पतेपर पत्र लिखती रह सकती हो।
हृदयसे तुम्हारा,
मो० क० गां०
माई डियर चाइल्ड