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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

एक विशेष पत्र-वाहक भेज रहा हूँ। उक्त कागजको श्री मजहरुल हकको[१]भी दिखा देना। उन्होंने तार द्वारा सूचित किया है कि जरूरत पड़नेपर वे आनेको तैयार हैं। श्री मजहरुल हकको मैं इस आशयका उत्तर दे चुका हूँ कि वे मेरी गिरफ्तारीके पश्चात्आ जायें। जबतक में गिरफ्तार नहीं किया जाता तबतक मुझे केवल ऐसे स्वयंसेवकोंकी जरूरत है जो गाँव-गाँवमें जाकर लोगोंकी राम कहानी सुनें।

कल रातको जो हिदायतें[२] मैंने जल्दी-जल्दी लिखी हैं; उन्हें पढ़कर तुम्हें मालूम हो जायेगा कि आवश्यकता किस बातकी है। नेताओंको वहाँ दो काम कर डालने चाहिए; एक तो पक्षपात-रहित और शीघ्रतापूर्वक की जानेवाली जाँच की माँग, दूसरे लगनके साथ काम करनेवाले खासे पढ़े-लिखे ऐसे स्वयंसेवकोंका जत्था (१००), जो भिन्न-भिन्न गाँवोंमें जाकर रहे और ग्रामीणोंको जोर-जुल्मसे बचाये और जानकारी इकट्ठी करे। यदि अधिकारीगण स्वयंसेवकोंका जाना नापसन्द करें तो उन्हें उसकी परवाह नहीं करनी चाहिए। स्वयंसेवक यथासंभव बिहारी ही हों। इस कामका श्रेय उन्हींको मिलना चाहिए।

मेरा खयाल तो अब भी यही है कि तुम्हारा इस संघर्षमें कूदना जरूरी नहीं है; मैंने ऐन्ड्रयूजको आ जानेके लिए लिख दिया है। मैं चाहता हूँ कि तुम अपनेको मुक्त महसूस करो और इंग्लैंड जाने और वहाँ बसनेकी तैयारी करो।

मेरी अनुपस्थितिमें यहाँके गोरखप्रसाद बाबू तुम्हें सारे समाचार देते रहेंगे। अगर मेरी गिरफ्तारी न हुई तो मैं कल गाँवोंकी ओर चल पडूंगा । और दो दिन वहीं घूमता रहूँगा।

सस्नेह,

तुम्हारा,
भाई

[पुनश्च: ]

मजिस्ट्रेटके उत्तरसे तुम्हें मालूम हो जायेगा कि कल मेरा ‘निबटारा’ होगा।

इसलिए अब गाँवोंमें जाना न होगा।[३] गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल अंग्रेजी पत्र (जी० एन० २८२१) की फोटो-नकलसे।

 
  1. १. (१८६६-१९३०); बिहारके राष्ट्रीय नेता; मुस्लिम लीगकेज न्मदाताओंमें से थे; और बादको उसके अध्यक्ष हुए; १९१४ में कांग्रेसकी ओरसे इंग्लैंड जानेवाले शिष्टमण्डलके सदस्य; चम्पारन-संघर्षं तथा असहयोग आन्दोलनमें गांधीजीका हाथ बँटाया था।
  2. २. देखिए “कार्यकर्ताओंके लिए निर्देश”, १६-४-१९१७।
  3. ३. देखिए “पत्र: चम्पारनके जिला मजिस्ट्रेटको”, १७-४-१९१७।