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चम्पारनको स्थितिके सम्बन्धमें टिप्पणी―३

श्री हेकॉकके[१] पत्रसे पता चलता है कि (१) ज्यादासे-ज्यादा २०,००० रु० की क्षति हुई है; वे स्वयं इस बातपर बहुत जोर देते हैं कि यह बागान-मालिकों द्वारा दिया गया मोटा अनुमान मात्र है; (२) जाँच-कार्य और आगकी घटनाके बीच किसी भी प्रकारका सम्बन्ध है, उनके पास इस बातका कोई प्रमाण नहीं है।

साथ ही यह तथ्य भी ध्यानमें रखने योग्य है कि मण्डलीका कोई सदस्य इन जगहोंपर नहीं गया है, और जिस समय आग लगी उस समय कोठीके उस छोटे बाहरी बँगलेका कोई उपयोग नहीं किया जा रहा था। आगकी दूसरी घटना[२] इस माहकी १९ तारीखको घटी। एक कचहरी जलकर राख हो गई। यह नहीं मालूम कि इस जगहका उपयोग बागान-मालिक कचहरीके ही रूपमें करते थे या नहीं। यह सही है कि यह आग जहाँ लगी वहाँ मण्डलीने हाल ही मैं दौरा किया था। श्री गांधी वहाँ बुधवारको गये थे, और शुक्रवारको आग लगी। आग लगते ही श्री गांधीके पास सूचना आई कि यह हरकत शायद कोठीवालोंकी है। इस आशयका एक बयान[३] दर्ज किया गया है कि आग लगनेसे एक दिन पहलेकी शामको कारखानेका एक आदमी कागजात हटाते देखा गया था। अर्थात्, कचहरीमें आग लगानेसे पहले वहाँसे कागज-पत्र हटा दिये गये थे। इस कथाको इस तथ्यसे भी बल मिलता है कि बुधवारको जो जाँचकी कार्रवाई हुई थी उसमें मैनेजर और सब डिवीजनल अफसर भी कुछ समयके लिए उपस्थित थे। उस समय रैयतने दृढ़तापूर्वक बयान दिया कि उन्हें जिरात भूमि लेनेके लिए वाव्य किया जाता है, और कारखानेको नीलके मूल्यमें गिरावटके फलस्वरूप जो हानि होती थी उसकी पूर्ति उसी जिरात भूमिसे की जाती है। इसपर मैनेजरने शेखीमें आकर कहा कि वह जिरातको खुशीसे वापस लेनेको तैयार है। श्री गांधीने तुरन्त ही उन लोगोंसे अपन नाम देनेको कहा जो जिरात भूमि वापस करनेके इच्छुक थे। (कारखानेकी दृष्टिमें) यह एक दुर्घटना हुई; और (अनुमान है कि इससे मैनेजर अवश्य ही क्रुद्ध हो गया होगा, और जाँच-कार्यको बदनाम करनेके लिए उसने आग लगवाई होगी। आग लगनेसे एक दिन पहले, बृहस्पतिवारको मैनेजर पड़ोसके एक गाँवमें गया और जिरात छोड़ देनेकी बातपर लोगोंपर काफी झल्लाया और धमकी दी कि अब वह उन्हें नीलकी खेती करनेको मजबूर करेगा। रैयतपर इन बातोंका कोई असर नहीं हुआ; शायद यह भी आग लगवानेका एक कारण हुआ। लेकिन यह सब केवल अनुमान है और सम्भव है इसका तथ्योंसे कोई सम्बन्ध न हो। एक बात निश्चित है कि मण्डलीका आगकी घटनाओंसे कोई सम्बन्ध नहीं है। कचहरीकी लागतका पता नहीं है लेकिन वह २०० रु० से अधिक नहीं होगी।[४]

गाँववालोंको तंग करते रहना उनका तीसरा तरीका है। डराने-धमकानेका सबसे हालका दृष्टान्त यह है कि कारखानेके अमला एक गाँवमें गये और एक छोटे जमींदार के

 
  1. १. देखिए “पत्र: एसोसिएटेड प्रेस ऑफ इंडियाको”, १४-५-१९१७ की पाद-टिप्पणी २।
  2. २. ढोकरहामें।
  3. ३. देखिए परिशिष्ट ६ (व)।
  4. ४. देखिए “पत्र: डब्ल्यू० बी० हेकॉकको”, २२-५-१९१७ के साथ संलग्न वक्तव्य।