संस्कृतको सुगम बना लें और उसे मराठीके साथ संयुक्त करके एक दिन संस्कृत और एक दिन मराठी पढ़ायें। इससे समयकी बचत होगी। सम्भव है, दोनों भाषाओं में से कोई भी नित्य न पढ़ाई जाये; फिर भी यह बात उनके सम्बन्धमें लागू होगी। उनके घंटे कम करने ही होंगे। जबतक शालामें केवल आश्रमवासी लड़के ही हैं, तब-तक धार्मिक शिक्षाके लिए घंटा अलग से रखने की जरूरत नहीं रहती। जो आख्यान सुनाना चाहें, प्रार्थनाके समय सुना दें, यह पर्याप्त होगा।
मुझे लगता है कि यदि काकाको[१] कवायद कराना अच्छी तरह आता हो तो वर्गका आरम्भ और अन्त कवायदसे ही किया जाये। इसके लिए पांच मिनट आरम्भमें और पाँच मिनट अन्तमें देना पर्याप्त होगा। लेकिन, यह बात अंग-संचालन सीख लेनेके बादकी स्थितिपर लागू होगी। अंग-संचालन सिखानेके लिए सप्ताह में किसी एक दिन समय निकाल लिया जाये। जो सिखाया जाये उसका सप्ताह भर अभ्यास कराया जाये। जब तक जमीन न मिल जाये तबतक खेतीका काम करना कठिन ही है। फिलहाल तो शायद उसे छोड़ देना ही ठीक होगा। जो व्यक्ति हमें सिखाये वह ऐसा हो जो स्वयं किसान रह चुका हो। यदि कोई माली मिल जाये तो वह खेतपर ही रहे और हमें खेतीकी विशिष्ट विधियाँ बताय। हम शिक्षक और विद्यार्थी――दोनों एक-दो वर्ष उन विधियोंको सीखें। उसके बाद हम कृषि विज्ञान पढ़ाना आरम्भ करें। खेतीका घंटा सभी विद्यार्थियोंको नित्य नहीं दिया जा सकेगा। यदि विभिन्न वर्गोंको प्रति सप्ताह दो-तीन दिन दिये जायें तभी उसे सब सीख सकते हैं। खेतीका काम सिखानेके लिए चालीस मिनटका समय पर्याप्त नहीं है; हाँ, कृषि विज्ञान सीखनेके लिए पर्याप्त है। यही बात बुनाईके कामके बारेमें भी है। दोनोंमें अभ्यासकी आवश्यकता है। इसलिए ऐसे दिन निकालने चाहिए, जब विद्यार्थी कमसे-कम दो घंटे लगातार दे सकें। भाई पंड्या यदि खेतीका काम और कृषि विज्ञान दोनों जानते हों और वे आ जायें तो, निस्सन्देह, वे बहुत उपयोगी सिद्ध होंगे। मेरा खयाल यह है कि सामान्यतः सरकारी कृषि कॉलेजोंसे निकले लोग हमारी अधिक सहायता नहीं सकते। मगन-लालसे शान्तिनिकेतनके नगीन बाबूकी बात सुनानेको कहिए। उसका दोष नहीं था। वह कर ही क्या सकता था?
बारह वर्षकी आयु होने तक बढ़ईगिरी सिखानेकी जरूरत नहीं है। इससे पहले तो बालक हथौड़ा भी नहीं चला सकता। लेकिन इस उम्रके बाद इसे सीखे बिना छुटकारा नहीं है। इस कार्यको खेतीके धन्धेका अंग मानना चाहिए। भारतमें ऐसा नहीं है। किन्तु हम इस कार्यको, जबतक अपनी जमीनपर नहीं चले जाते, तबतक नहीं कर सकते।
‘वर्कशाप’ का गुजराती शब्द ढूँढ़ना ही होगा। “कारखाना” से काम चलेगा क्या? पाठ्यक्रममें किसीने “मीट्रिक सिस्टम” लिखा है। आगे से ऐसा लिखते समय सोचना होगा। ऐसी माथा-पच्ची तो अभी कितने ही मामलोंमें करनी होगी। यदि आप लोग ऐसा करेंगे तो भावी सन्तति उसके सुफलका उपभोग करेगी।
- ↑ १. कालेलकर।