पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 13.pdf/४८६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४५०
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

सेवाके लिए जो कुछ जानना या सहायता प्राप्त करना चाहते हों, केवल एक कार्यकर्ता बेतिया में रह गया है। उनको यह सलाह दी जा रही है कि जबतक जाँचका परिणाम घोषित नहीं होता तबतक वे हर हालत में वर्तमान स्थितिको यथावत् बनाये रखें। श्री गांधीका दृढ़ मत है कि जहाँ उनकी मंडलीने असंदिग्ध रूपसे किसानों के दमनके विरोधके निश्चयको दृढ़तर बनाया है और उनमें अपनी स्वतन्त्रताके लिए संघर्ष करनेका हौसला पैदा किया है, वहाँ उसकी उपस्थिति किसानोंको भी किसी प्रकारकी ज्यादती करनेसे रोकेगी। यदि उनका मार्गदर्शन न किया जाये तो वे गुमराह होकर कोई ऐसा कार्य कर सकते हैं जो अन्ततः उनके लिए हानिकर हो। समितिकी बैठक १५ जुलाईके लगभग होगी।[१]इस दरमियान श्री गांधी कुछ दिनके लिए अहमदाबाद जा रहे हैं और वहाँसे इसी मासकी २२ तारीखको मोतीहारी लौटेंगे।

जहाँतक समितिकी रचनाका सम्बन्ध है, श्री गांधीने उसमें अपनी नियुक्ति इस स्पष्ट शर्तके साथ स्वीकार की है कि वे स्वयं गवाही देने और काश्तकारोंकी गवाही तैयार करने और पेश करने के लिए स्वतन्त्र होंगे एवं इस सम्बन्ध में उनकी स्थिति वैसी ही होगी जैसी समितिका सदस्य न होनेपर होती। उन्होंने यह कदम माननीय मालवीयजी और बिहारी मित्रोंकी अनुमतिसे उठाया है। वे उन लोगोंसे रांचीसे लौटने के बाद बांकीपुरमें मिले थे। सरकारने अन्य सदस्योंकी नामजदगी बहुत सावधानीसे की है। इसमें उसका दृष्टिकोण यह रहा है कि समितिके निष्कर्ष न्यायोचित हों। रांचीकी बातचीत में शुरूसे लेकर आखिर तक लेफ्टिनेंट गवर्नरकी यह तीव्र इच्छा रही कि कोई समुचित समझौता हो जाये।

एसोसिएटेड प्रेसने इस आशयका एक अनधिकृत वक्तव्य प्रचारित किया है कि श्री गांधीने गुप्त जाँचकी सलाह दी है। यह समाचार तत्त्वत: सही है। संगृहीत गवाही उत्तेजक किस्मकी है और उसपर अखबारों में गर्मागर्म चर्चा छिड़नेसे निश्चय ऐसा वातावरण उत्पन्न होगा जिससे निष्पक्ष जाँच करनेमें बाधा पड़ेगी। मण्डलीकी यह इच्छा नहीं है कि व्यर्थ ही जमींदारोंके हितोंको अनावश्यक हानि पहुँचाई जाये, और इसीलिए उनके हितोंका खयाल करके और यह बतानेके लिए कि मण्डली काश्तकारोंके प्रति न्याय करानेकी ही इच्छुक है, इसके अतिरिक्त वह और कुछ नहीं चाहती, गुप्त जाँचका सुझाव दिया गया था। इस विधिको अपनानेसे काश्तकारोंको हानि नहीं पहुँच सकती। यह निष्कर्ष नहीं निकालना चाहिए कि रिपोर्टको जनताके सम्मुख रखनेकी बात नहीं थी। फिर भी एसोसिएटेड प्रेसका वक्तव्य प्रकाशित होनेपर श्री गांधीने सरकारको तार दिया[२] कि चूँकि वह सुझाव सर्वथा जमींदारोंके हितमें था, इसलिए वे उसे वापस लेते हैं और यदि जमींदारोंकी यही इच्छा है तो वे खुली जाँचका स्वागत करेंगे।

यह समझ लेना चाहिए कि यद्यपि फिलहाल और स्वयंसेवकोंकी आवश्यकता नहीं है किन्तु समितिकी रिपोर्टपर सरकारका फैसला छपते ही उनकी जरूरत पड़ेगी। सरकारकी जाँचका परिणाम चाहे जो हो, उसका इनके कार्यपर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। इन

  1. १. देखिए परिशिष्ट ७।
  2. २. देखिए “तार: बिहारके मुख्य सचिवको”, ८-६-१९१७।