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३५७. आश्रम-कोषके लिए परिपत्र

मात्र निजी प्रचारके लिए

मोतीहारी
चम्पारन
आषाढ़ सुदी ११, संवत् १९७३
[जुलाई १, १९१७][१]

स्नेही भाईश्री,

सत्याग्रह आश्रम तथा उससे सम्बन्धित कार्रवाइयोंपर होनेवाला खर्च इतने दिनों तक केवल मित्र समुदाय द्वारा स्वेच्छया दी गई सहायतापर चला, लेकिन उसकी प्रवृत्तियाँ इतनी बढ़ गई हैं कि अब उसका खर्च बिना माँगे चल सकेगा, ऐसा नहीं जान पड़ता।

आश्रमकी प्रवृत्तियोंको निम्नलिखित विभागों में बाँटा गया है:
१. आश्रमवासियोंके रहने तथा खानेका खर्च: इस समय आश्रममें छोटे-बड़े मिलाकर ३० व्यक्ति हैं। भाड़े सहित उनका खर्च प्रति मास लगभग ४०० रुपये आता है। इसमें मेहमानोंपर होनेवाला, खर्च भी शामिल है।
२. हाथ करघेका काम : आश्रममें दो वर्ष पहले यह काम किसीको नहीं आता था। आज आश्रमके अधिकांश लोगोंको यह काम थोड़ा-बहुत आता है। और उनमें से कुछ तो [इस काममें] निपुण माने जाते हैं। आश्रममें सात खड्डियाँ हैं। इसकी देखरेखमें पाँच खड्डियाँ और चलती हैं। इस प्रवृत्तिमें ३,००० रुपयेकी पूँजी लगी हुई है। कपड़ा बननेके साथ ही बिक जाता है। अबतक ५०० रुपयेका कपड़ा बेचा गया है । इस उद्योगमें चार परिवारोंने, जिन्होंने बुनाईके कामको छोड़ दिया था, फिरसे हाथ लगाया है और इससे कुल मिलाकर १७ व्यक्ति अपनी जीविका कमाते हैं। एक परिवारने करघेका काम नया-नया सीखकर अपना भरण-पोषण आरम्भ करनेका प्रयत्न आरम्भ किया है। इस धन्धेसे [हम] अपनी आजीविका कमा सकते हैं यह बात अभी नहीं कही जा सकती। उम्मीद है कि दस वर्षके भीतर हजारों बुनकर, जिन्होंने यह धंधा छोड़ दिया था, इसे फिरसे अपना लेंगे। सब लोग इस बातको स्वीकार करते हैं कि कपड़ा बुननेकी मिलें रहनेपर भी देशमें हाथसे कपड़ा बुननेवालोंके लिए बहुत अधिक गुंजाइश है। इस काममें अभी नुकसान हो रहा है लेकिन अन्ततः
 
  1. १. देखिए “पत्र: फूलचन्द शाहको”, ३-७-१९१७, जिसमें लिखा है, “कल एक प्रति अम्बालाल भाईको भेजी।” तथापि छपी हुई प्रतिपर आषाढ़ बदी ९, संवत् १९७३ की तारीख पड़ी है। जो अंग्रेजी पंचांगके अनुसार जुलाई १३, १९१७ ठहरती है।