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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

इनकार नहीं कर सकता। इस बातसे भी इनकार नहीं किया जा सकता कि देश ऐसा प्रचार करना चाहे तो उसे इसका अधिकार है। हममें से बहुत से लोगोंका श्रीमती बेसेंटसे मतभेद है; किन्तु उनकी शक्ति और निष्ठाको सभीने स्वीकार किया है। कांग्रेस श्रीमती बेसेंटपर ‘कब्जा’ करनेका प्रयत्न कर रही थी और श्रीमती बेसेंट कांग्रेसपर। अब वे दोनों लगभग एक हो गये हैं। मैं आपसे पूर्ण हार्दिक अनुरोध करता हूँ कि सरकारको अधिकसे-अधिक साहसपूर्ण नीति अपनानी चाहिए अर्थात् अत्यन्त स्पष्टतापूर्वक अपनी इस जबरदस्त भूलको स्वीकार कर लेना चाहिए। वह नजरबन्दीकी आज्ञाओंको वापस ले ले और यह घोषित कर दे कि देशको ऐसा कोई भी प्रचार, जो ब्रिटेनके संविधानके विरुद्ध न हो और हिंसासे सर्वथा मुक्त हो, करनेका अधिकार है। ऐसी कार्रवाई दुर्बलताकी नहीं, शक्तिकी सूचक होगी। इसे वही सरकार कर सकती है जो सदा न्याय ही करना चाहती है, और जिसमें अन्यायको कुचलनेकी शक्ति हो।

यदि दुर्भाग्यसे सरकारने भीरुताका परिचय दिया तो देशकी शान्ति नष्ट हो जायेगी और हिंसाकी भावना भी अवश्य फैलेगी। खुली हिंसाकी बात समझमें आती है और वह सँभाली जा सकती है। सम्भव है, खुली हिंसाकी बजाय गुप्त हिंसा करनेका प्रयत्न किया जाये। उसका उत्तरदायी कोई नहीं होगा और न उसका दायित्व कोई अनुभव करेगा। मैं देखता हूँ, और मुझे इसका दुःख है कि युवक, जिनका मार्गदर्शन कोई खास व्यक्ति नहीं कर रहा है, इस दिशामें बह रहे हैं। मैंने अपना जीवन इस रोगको बढ़ने से रोकनेके लिए और जहाँतक यह जड़ पकड़ गया है वहाँतक उसकी जड़ें खोदनेके लिए अर्पित कर दिया है। मैंने युवकोंके सम्मुख और सामान्यतः भारतीयों के सम्मुख नम्रतापूर्वक एक अधिक अच्छा और अधिक प्रभावकारी तरीका रखा है और वह है आत्मबल या सत्यबल या प्रेमबलका तरीका, जिसे मैंने कोई अधिक उपयुक्त शब्द न मिलनेसे निष्क्रिय प्रतिरोध कहा है। और मैं नेताओंसे इस तरीकेको इस नाजुक मौकेपर पूरी तरह और साहसके साथ स्वीकार कर लेनेका अनुरोध कर रहा हूँ। इसमें अन्ततक स्वयं ही कष्ट सहना होता है और वह भी अकेले। संसारकी कोई भी सरकार निर्दोष लोगोंको लगातार कैद नहीं रख सकती और न परेशान कर सकती है। ब्रिटिश सरकारमें भी यह सामर्थ्य नहीं है। उसका बहुत बड़ा रहस्य और विशिष्ट गुण यह है कि वह जब कोई अनुचित कार्य भी करती है तब भी संसारके सम्मुख नैतिक आधारपर उसका औचित्य सिद्ध करनेका प्रयत्न करती है।

मेरा खयाल है, मैं अपनी बात पर्याप्त स्पष्ट कर चुका हूँ। आशा है, मैंने जो कुछ कहा है उसका अर्थ गलत न लगाया जायेगा। मैंने इस पत्रको लिखनेकी जो धृष्टता की है उसके लिए क्षमा चाहता हूँ और अपने प्रस्तावकी स्वीकृतिके लिए हार्दिक प्रार्थना करता हूँ।

कृपया इस पत्रको वाइसरॉय महोदयके सम्मुख प्रस्तुत कर दें। यदि शिमलामें मेरी उपस्थिति आवश्यक हो तो वे जब कहें मैं आ सकता हूँ।

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी