३६३. पत्र: रामनवमी प्रसादको
रांची
[जुलाई ८, १९१७के लगभग]
वाबु बृजकीशोरजीके मुसे आपका शरीरकी हालत सुन कर मेरा हृदय रोता है। आपको बीमारी होना नहिं चाहीये। देशका काम तो बहुत ही करना है और देशके सिपाही लोग रोगग्रस्त हो जायेंगे तो क्या हाल होगा? इस बातका ख्याल करके बीमारीको हटा देनेका प्रयत्न करोंगे ऐसी मेरी उमेद है। वेदोंसे रोग नाबुद नहि होगा। रोगका कारण स्वच्छंद है। उसकी दवा संयम है। हमेशा हम स्वच्छंद देख नही सकते हैं। हमेशा कीस प्रकारका संयम करना वह मालुम नहिं पड़ता है। परन्तु विचार करनेसे दोनों चीज दृष्टिगोचर होती है।
आपका,
मोहनदास गांधी
गांधीजीके हस्ताक्षरों में मूल पत्र ( जी० एन० ७३४) की फोटो नकलसे।
३६४. पत्र: फूलचन्द शाहको
रांची
रविवार [जुलाई ८, १९१७][१]
मैंने जैसा पत्र[२] पूजाभाईको भेजा है उसी आशयके पत्र निम्नलिखित व्यक्तियोंको भेज दिये गये हैं अथवा भेज दिये जायेंगे; अम्बालाल साराभाई, रणछोड़भाई पटवारी, बेचरलाल कालीदास, कुंवरजी आनन्दजी, गोविन्दजी डाह्याभाई, शुक्ल बैरिस्टर,[३] देवचन्दभाई बैरिस्टर,[४] डॉक्टर मेहता, मंगलदास सेठ,[५] नरोत्तमदास मोरारजी,[६] ललुभाई
- ↑ १. पूंजाभाईको लिखे गये पत्रके उल्लेखसे लगता है कि यह “पत्र: फूलचन्द शाहको”, ३-७-१९१७ के बाद लिखा गया था। इसके सिवा रविवार, ८ जुलाईको गांधीजी रांचीमें ही थे और वहाँसे गुरुवार १२ जुलाईको वापस मोतीहारी लौट गये थे।
- ↑ २. देखिए “पत्र: फूलचन्द शाहको”, ३-७-१९१७।
- ↑ ३. राजकोटके दलपतराम भवानजी शुक्ल; लन्दनमें गांधीजीके सहपाठी।
- ↑ ४. देवचन्द पारेख: गांधीजीके सहपाठी और मित्र।
- ↑ ५. अहमदावादके उद्योगपति; अहमदावादमें आश्रमकी स्थापना के समय गांधीजीकी आर्थिक सहायता की थी।
- ↑ ६. बम्बईके व्यापारी और उदार दलीय राजनीतिश; जिन्होंने गांधीजीके कार्य-कलापोंमें गहरी दिलचस्पी ली थी।