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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय
(३) कर्मचारी शिकायतोंको बिलकुल नहीं सुनते।
(४) जहाज-कर्मचारी यात्रियोंके साथ दुर्व्यवहार करते हैं और प्रायः रिश्वत लेते रहते हैं।
(५) चूँकि यात्रियोंके बैठानेमें गुंजाइश और तरीकेका कोई भी खयाल किये बिना उनको किसी तरह ठूँस-ठास दिया जाता है, इसलिए सबसे अच्छा स्थान सबसे तगड़े या धनी लोगोंको ही मिलता है।
(६) उपर्युक्त (५) में सूचित पद्धति महिला यात्रियोंके लिए भी अपनाई जाती है। और उनके लिए पुरुषोंसे अलग स्थानका प्रबन्ध नहीं किया जाता।
(७) डेकमें बहुधा गन्दगी रहती है। यात्रियोंके बरतावपर नियन्त्रण रखनेकी भी कोई व्यवस्था नहीं है; इसीका परिणाम है कि गन्दे किस्मके यात्री जहाँ मनमें आया थूक देते हैं और जहाँ चाहते हैं खाना खाने लगते हैं, जिससे कि सफाई-पसन्द यात्रियोंको असुविधा होती है।
(९) शौचालय बहुत ही ज्यादा गन्दे रहते हैं; महिलाओंके लिए नियत शौचालयोंका इस्तेमाल बहुधा पुरुष ही करते हैं; श्रीमती गांधी जितनी बार शौचालय गईं उनके साथ किसी-न-किसीको विशेष तौरपर जाना ही पड़ा। और कुंडी तो एक भी दरवाजमें नहीं है।
(१०) स्नानादिके स्थान बहुधा जहाजी कर्मचारियोंसे भरे रहते हैं। और कपड़े धोनेकी तो कोई भी सुविधा नहीं है।
(११) उपर्युक्त (९) और (१०) में जिस स्थानकी बात कही गई है, वह यात्रियोंकी संख्याको देखते हुए अत्यन्त अपर्याप्त है।
(१२) हस्ताक्षरकर्त्ताने अपनी यात्राओंके दौरान महसूस किया है कि डेक-यात्रियोंके लिए जितनी जगह रखी जाती है उसपर उससे कहीं अधिक यात्री भर लिये जाते हैं।
(१३) यात्रियोंका सामान रखनेके लिए भी कोई ठीक व्यवस्था नहीं दिखती; परिणाम यह है कि सामान ही बहुत अधिक स्थान घेर लेता है।
(१४) हस्ताक्षरकर्त्ताने देखा है कि अज्ञान, भय, काहिली और ऐसे ही अन्य कारणोंसे यात्री लोग शिकायतें करना टालते रहते हैं।
भाग २

उपाय

हस्ताक्षरकर्ताकी रायमें
(१) कम्पनीके अपने भरोसेके कुछ विशेष प्रतिनिधि डेक-यात्रियों और उनके कष्टोंको समझनेके लिए तत्पर होने चाहिए और इनकी नियुक्ति सरकारकी मंजूरीसे होनी चाहिए।
(२) घाटोंपर काम करनेके लिए यात्रियोंके हित में काम करनेवाले जाने-माने संगठनोंके विश्वासपात्र स्वयंसेवकोंकी सहायता ली जानी चाहिए।
(३) डेकों, शौचालयों और स्नानादिके स्थानोंकी संख्या बढ़ाई जानी चाहिए।