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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

 

श्री गांधीने कहा: तब तो रैयतकी आधी बात सच है।

यह सही था कि उसने रैयतकी जमीनके कुछ भागको जिरात जमीनमें बदल लिया था, लेकिन उसके बदलेमें उनको दूसरी जमीनें दी गई थीं। बदलेमें मिली जमीनपर रैयतने सचमुच फसलें बोई और काटी थीं। अच्छी तरह निगरानी कर सकनके लिए उन जमीनोंको बदलकर एक ही जगह सभी जिरात जमीन रखना जरूरी हो गया था। सभी जमींदारियोंमें जमीनोंकी इस प्रकार अदला-बदली की जाती है।

गवाहका बयान इतना ही था। इसके कुछ ही समय बाद समिति स्थानीय रूपसे जाँच करने और प्रदेशके भीतरी गाँवोंमें जानेके विचारसे बेतियाके लिए रवाना हो गई।

[अंग्रेजीसे]
पायनियर, २८-७-१९१७
 

३७४. चम्पारन-समितिको बैठककी कार्यवाहीसे

गेस्ट हाउस
बेतिया
जुलाई २७,१९१७

काँजी हाउस: श्री गांधीने विचार व्यक्त किया कि काँजी हाउसोंकी नीलामी नहीं होनी चाहिए, बोर्डको खुद ही उनकी सीधी देखरेख करनी चाहिए...

१. खेतीकी लागत:――श्री रोडने कहा कि बागान मालिकोंको जिरात खेतीकी प्रति एकड़ लागत ७ से ८ रुपये तक पड़ती है। राजा कीर्त्यानन्द सिंह[१] ने अपने अनुभवके आधारपर इसकी पुष्टि की। श्री गांधीने कहा कि रैयतका अनुमान है कि इसकी लागत २० या २५ रुपये प्रति एकड़से कम नहीं बैठती, लेकिन वे फैक्टरीको बहियाँ देखनेके बाद इस प्रश्नकी और छानबीन करेंगे ......श्री गांधीने कहा कि स्वैच्छिक ठेकोंकी अवधि एक वर्षतक सीमित की जानी चाहिए।

शरहबेशी――श्री गांधीने कहा कि दुबारा बन्दोबस्तके दौरान तिन-कठियाके बदले लगानमें वृद्धि करने (शरहबेशी) की बातको मान्यता दी गई थी, परन्तु उसपर पुनः विचार किया जाना चाहिए और उसे घटाकर लगानमें उतनी ही साधारण वृद्धिको अनुमति दी जानी चाहिए जितनी कि मूल्योंकी वृद्धिके कारण दी जा सकती है। अध्यक्ष और अन्य सदस्य इससे सहमत होनेके लिए तैयार नहीं थे। उन्होंने कहा कि

  1. १. बनैलीके राजा कीर्त्यानन्द सिंह; बिहार तथा उड़ीसा विधान परिषद्के सदस्य, जिनको जुलाई ९, १९१७को, राजा हरिहरप्रसाद नारायण सिंहके त्यागपत्र दे देनेपर, चम्पारन समितिका सदस्य नियुक्त किया गया था।