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८२. चम्पारन-समितिको बैठककी कार्यवाहीसे

अगस्त १०, १९१७

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(१) काश्तपर खर्च――श्री गांधीने कहा, मुझे अभी तक श्री जेम्सनसे[१] कतिपय आँकड़े प्राप्त नहीं हुए हैं। किन्तु बादमें उन आँकड़ोंसे किसी नई बातके मालूम होनेकी स्थितिमें तरमीमकी गुंजाइश रखते हुए, समितिकी बैठकके अन्तमें यह तय हुआ कि अधिकतम व्यय रु० १५ प्रति बीघा (८-हाथ लग्गी) या रु० १० प्रति एकड़ है।

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(२) श्री गांधीने कहा कि देहातके उपयोगकी फसलोंके बीजकी कीमत थोड़ी होती है; लेकिन सभापतिने कहा कि रबीकी फसलके बीजका खर्च बहुत होता हैं।...

खुश्की नील――श्री गांधीने सुझाव दिया कि खुश्की नीलके लिए एक निम्नतम दर नियत कर दी जानी चाहिए। श्री रोडके विचारमें इस सुझावका असर दूसरी फसलोंपर, उदाहरणार्थ, गन्नेपर भी पड़नेका डर था। बहसके बाद यह तय हुआ कि नीलके इतिहासको देखते हुए, यदि संक्रमण कालमें संघ ही कमिश्नरकी स्वीकृतिसे खुश्की नीलकी एक निम्नतम दर नियत कर दे तो अच्छा हो। यह संक्रमण काल तबतक ही माना जायेगा जबतक सरकारको यह इत्मीनान नहीं हो जाता कि रैयत यह जान गई है कि उसके लिए मर्जी न होनेपर नीलकी खेती करना आवश्यक नहीं है।

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तिन-कठिया रद करनेका मुआवजा――दूसरा विचारणीय विषय यह था कि ऐसे मामलोंमें जहाँ काश्तकारीकी शर्तके अनुसार नीलकी खेती करना लाजिमी था, वहाँ तिन-कठिया प्रथा समाप्त करनेके एवजमें कोई मुआवजा दिया जाये या नहीं। सभापतिने समितिके सामने अपने विचार प्रकट करते हुए कहा, मैं रैयतके प्रति अन्याय करनेवाली हर चीजको हटानेके लिए उत्सुक हूँ। ... उन्होंने कहा, शायद श्री गांधीको रैयतवारी इलाकेका ही अनुभव है; इसलिए वे जमींदारोंकी स्थितिको पूरी तरह नहीं समझ सके हैं। उन्होंने समितिके सामने यह सुझाव रखा कि इन मामलोंका निबटारा करनेके लिए एक विशेष अदालत नियुक्त की जाये। यह अदालत निर्णय करेगी कि:

(क) क्या काश्तकारीकी वास्तवमें ऐसी कोई शर्त थी, और यदि थी तो उक्त अदालत

  1. १. जे० बी० जेम्सन, जलहा फैक्टरीके प्रबन्धक।