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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

 

अध्यक्षने कहा कि तथ्य यह है कि बागान-मालिकों और रैयतके बीच हुए एक बन्दोबस्तके अनुसार शरहबेशीमें ५० प्रतिशतकी वृद्धि की गई थी। श्री गांधीने कहा कि यह वृद्धि बहुत ज्यादा है क्योंकि जिस कानूनी जायदादके बदले यह बढ़ी हुई अतिरिक्त रकम वसूली गई थी, वह न्याय-विरुद्ध है और इसलिए अतिरिक्त वृद्धिमें कमी की जानी चाहिए। श्री गांधीने यह भी कहा कि यह तथ्य भी विचारणीय है कि काश्तकार लगान अदा नहीं, कर रहे हैं, और एक मामलेमें तो उनको अपने विरोध में सफलता मिल चुकी है। मेरा सुझाव मान लेनेपर समिति वर्त्तमान संकटको तत्काल समाप्त कर सकेगी। समिति फैसला करनेकी अपनी जिम्मेदारी किसी दूसरी निर्णायक समिति (विशेष अदालत) पर नहीं डाल सकती। श्री ऐडमीकी रायमें एक आना रुपया काफी नहीं था, और श्री रेनी द्वारा बताई गई कठिनाइयोंको ध्यानमें रखते हुए वे इस पक्षमें थे कि मुकर्ररी गाँवोंमें एक विशेष अदालत द्वारा ऐसे सभी मामलोंमें लगान एक सर्वसामान्य तरीकेपर निश्चित कर दिया जाये जहाँ नील पैदा करनेकी बाध्यता या तो अब भी बनी हुई थी, और या उसके बदले शरहबेशी दी जाती थी। राजा कीर्त्यानन्द सिंहने अपनी टिप्पणीमें रुपयेमें चार आने बढ़ानेके प्रस्तावका समर्थन किया। श्री गांधीने कहा कि यदि श्री ऐडमीका प्रस्ताव स्वीकार कर लिया गया तो माना जायेगा कि समितिने अपना आधा ही फर्ज निबाहा है। इसके विरुद्ध मेरी मुख्य आपत्ति यह है कि जो क्षोभ पहलेसे ही व्याप्त है इस प्रस्तावसे उसमें और वृद्धि होगी। समितिको बागान-मालिकोंसे परामर्श करनेका अधिकार है, और मेरी दृष्टि में उसका बागान-मालिकोंके साथ ही कोई समझौता कर लेना ज्यादा अच्छा होगा; क्योंकि किसी निर्णायक समिति या अदालतको नियुक्ति करनेसे अन्तिम समझौता होने में विलम्ब होगा। श्री रोडने कहा कि सबसे ज्यादा प्रभावित होनेवाली नील कम्पनियाँ मोतीहारी, पिपरा और तुरकौलियाकी हैं, और मैं इस प्रस्तावको इन तीनों कम्पनियोंके सामने रखनेको तैयार हूँ। सभापति महोदयने कहा कि पहले यह तय कर लेना चाहिए कि क्या बागान मालिकोंके सामने रखा जानेवाला प्रस्ताव अन्तिम होगा जिसे वे स्वीकार या अस्वीकार कर सकते हैं; अथवा इसे केवल एक ऐसा आधार माना जाये जिसपर आगे बातचीत की जा सके। मैं दूसरी बातके पक्षमें हूँ। बिना अदालतका सहारा लिये मामलेको तय कर लेनेमें बहुत लाभ है, और चूँकि मैं भी एक आनेको पर्याप्त नहीं मानता इसलिए मेरी रायमें इसके ऊपर बागान-मालिकोंसे बातचीत की जानी चाहिए। श्री गांधीने कहा, मैं यह नहीं कहता कि में एक आनेसे अधिक बढ़ोतरीको स्वीकार ही नहीं करूँगा, लेकिन मैं यह भी नहीं कह सकता कि मैं इससे ज्यादाकी बात स्वीकार कर लूँगा । मेरी तरफसे तो एक आना भी रियायत ही है, क्योंकि मैं मूल्य वृद्धिके कारण लगानमें जितनी बढ़ती की जा सकती है, रैयतको उससे अधिक देनेके लिए कहना उचित नहीं मानता। श्री रोडने कहा, मेरी समझमें बागान-मालिक आठ आनेसे कम वृद्धिकी बात स्वीकार नहीं करेंगे। उन्होंने कहा कि पिपरा तकमें, जहाँ सबसे अधिक बढ़ी हुई दरपर लगान वसूला गया है, लगान केवल रु० २ प्रति एकड़ है।