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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मिल गया है। क्या तुम विश्वास करोगे कि मुझे तुममें वह व्यक्ति मिल गया है जिसकी मुझे तलाश थी, ऐसा व्यक्ति जिसके ऊपर किसी दिन में अपना सारा काम छोड़कर निश्चित हो सकूँ, और जिसके ऊपर मैं निश्चित-भावसे भरोसा कर सकूँ। तुम्हें मेरे पास आना होगा। तुम होमरूल लीगको, जमनादासको, हर चीजको छोड़ दो। मैंने ऐसी बात इससे पहले सिर्फ तीन व्यक्तियोंसे कही है, श्री पोलक, कुमारी इलेसिन और श्री मगनलालसे। आज मैं उसी प्रकार तुमसे कह रहा हूँ, और ऐसा करते हुए मुझे बहुत खुशी है, क्योंकि मुझे तुममें तीन विशिष्ट गुण दिखाई पड़े हैं। गुण हैं नियमितता, निष्ठा और कुशाग्र बुद्धि। जब मैंने पहले-पहल मगनलालको चुना था उस समय उनमें कोई विशेषता नहीं मालूम होती थी। लेकिन आज उसका व्यक्तित्व तुम्हें आश्चर्यचकित करता है। मैंने उसे पहले प्रेसके कामकी शिक्षा दी। उसने पहले गुजरातीमें, और फिर अंग्रेजी, हिन्दी, तमिल तथा अन्य भाषाओं में कम्पोजिंगका काम सीखा। जिस तेजीसे उसने इस कलापर अधिकार जमा लिया उसे देखकर मैं विस्मित हो गया। तबसे उसने कई ढंगके कामोंमें अपनी कुशलताका परिचय दिया है। फिलहाल, हम मगनलालकी बातको छोड़ दें। बुद्धिकी जो कुशाग्रता मैंने तुममें देखी है, उतनी मुझे उसमें नहीं दिखाई पड़ी। मुझे विश्वास है कि अपने कई अच्छे गुणोंके कारण तुम कई दृष्टियोंसे मेरे लिए उपयोगी होगे।

मैं बिना एक शब्द बोले यह सब साश्चर्य और सलज्ज भावसे सुनता रहा। मैंने कहा, ‘लेकिन मैंने जो-कुछ किया है वह तो आपको कभी नहीं दिखाया’――इसपर उन्होंने निम्नलिखित बात कही:

तुम्हें कैसे मालूम? मैं बहुत-थोड़े समयमें आदमियोंको परख लेता हूँ। मैंने पोलकको पाँच घंटे में जाँच लिया था। उन्होंने किसी समाचारपत्रमें प्रकाशित मेरा एक पत्र पढ़ा था, और इसपर उन्होंने मुझे पत्र लिखा। इसके बाद वे मुझसे मिलने आये, और मैंने एकदम उनके गुणोंको भाँप लिया। तबसे वे मेरे आदमी बन गये। मेरे साथ आ जानेके बाद ही उन्होंने विवाह किया और वकीलकी हैसियतसे धन्धा शुरू किया। विवाहसे पहले उन्होंने मुझसे कहा कि उन्हें अपने बच्चोंके लिए कुछ कमाना जरूरी है। मैंने उनसे स्पष्ट कह दिया कि “तुम मेरे हो, और तुम्हारे तथा तुम्हारे बच्चोंके लिए व्यवस्था करनेकी जिम्मेदारी मेरी है, तुम्हारी नहीं। मैं तुम्हारा विवाह करवा रहा हूँ क्योंकि मैं देखता हूँ, तुम्हें विवाह करनेमें कोई आपत्ति नहीं है।” उनका विवाह मेरे ही घरपर सम्पन्न हुआ था। लेकिन अब कामकी बातपर लौटें। मैं तुम्हें होमरूल लीग और जमनादासके बारेमें सब विचार छोड़नेकी सलाह दूँगा। तुम हैदराबाद जाओ। साल सवा साल मौज करो। जी-भरकर जीवनका आनन्द लो। जिस क्षण तुम्हें लगे कि अपना समय नष्ट कर रहे हो तुम सब-कुछ छोड़कर मेरे पास चले आओ।

इसपर मैंने कहा कि मैं इसी समय आपके पास रहनेको तैयार हूँ। लेकिन वे बोले:

“मैं जानता हूँ कि तुम तैयार हो, पर मैं चाहता हूँ कि तुम थोड़ा और जीवन देख लो और सुख उठा लो। मुझे सहकारिता आन्दोलनकी तुम्हारी जानकारीकी भी जरूरत पड़ेगी। हमें इस विभागको उसके दोषोंसे मुक्त करना है। किसी बातकी