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उपनिवेशोंमें भारतीय प्रवासी

उद्योग-धन्धे मजदूरोंकी कमीका रोना रो रहे हैं, और उसकी आन्तरिक साधन-शक्ति ही अविकसित अवस्थामें हैं, उस समय घरके मोही भारतीयोंको भारतसे बाहर जानेके लिए उत्तेजन प्रदान करनेका विचार भी पागलपन है। जब बर्मा या लंका जानेवाले प्रवासियोंको ही अत्यन्त खराब परिस्थितियाँ सहनी पड़ती हैं और न तो सरकार और न कोई स्वयंसेवी संस्था ही उनकी रक्षा कर पाती है, तब फीजी या उन अन्य तीनों अत्यन्त सुदूरके उपनिवेशोंमें भला उनकी रक्षा कौन कर सकेगा। इसलिए मैं आशा करता हूँ कि भारतके जन-नेता अपने इस मतपर चट्टानकी तरह अटल रहेंगे कि वे भारतीयोंको उपनिवेशोंमें भेजे जानेके पक्षमें नहीं हैं। कहनेको यह दलील दी जा सकती है कि साम्राज्यका एक अंग होनेके नाते हमें अन्य अंगोंकी आवश्यकताओंका खयाल रखना चाहिए, लेकिन यह तर्क उस समय तक उचित नहीं ठहराया जा सकता जब-तक कि स्वयं भारतको अपने यहाँ उपलब्ध सम्पूर्ण श्रम-शक्तिकी आवश्यकता बनी हुई है। यदि भारत उपनिवेशोंकी सहायता नहीं करता, तो इसका यह मतलब नहीं कि वह ऐसा करना ही नहीं चाहता, बल्कि यह है कि वह सहायता करनेमें असमर्थ है। कोई राजनीतिक व्यक्ति एक और दलील भी रख सकता है, और वह उचित भी होगी, कि जबतक भारतको अन्य उपनिवेशोंके बराबरका दर्जा नहीं प्राप्त हो जाता, और जब-तक भारतमें अंग्रेजी मालिक तथा उपनिवेशोंमें अंग्रेज लोग भारतकी सन्तानको लकड़ी चीरने और पानी खींचनेका काम करनेके ही उपयुक्त मानते रहेंगे, तबतक उपनिवेशोंमें प्रवासकी कोई योजना भारतीय प्रवासियोंके लिए नैतिक दृष्टिसे लाभजनक नहीं होगी। यदि उन्हें हीनताका बिल्ला सदैव पहने रहना पड़ा तो वे अपने पूरे दर्जे तक कभी नहीं उठ पायेंगे, और इसीलिए प्रवास करनेसे उन्हें भौतिक लाभ जो कुछ भी हों, उनका कोई महत्त्व नहीं रह जाता।

लेकिन फिलहाल, आइये, हम नई प्रणालीपर विचार करें।

कहा गया है, यह प्रणाली, “जिसे भविष्य में अपनाया जायेगा, सहायता- प्राप्त प्रवासकी प्रणाली होगी; और इसका उद्देश्य भारतीयोंको अमुक उपनिवेशोंमें, कुछ समय तक वहाँ नौकरी करनेकी शर्तके साथ, ताकि वे उन उपनिवेशोंके जीवन और वहाँ कामकाज करनेके बारेमें अभ्यस्त हो सकें, जाकर बसनेके लिए प्रोत्साहित करना है। साथ ही, इस तरह उपनिवेशियोंके लिए मजदूरोंकी जरूरत भी पूरी करना इसका उद्देश्य है।

इस तरह, उपनिवेशोंमें प्रवासियोंको बसानेके साथ ये शर्तें जुड़ी हुई हैं कि वे वहाँ शर्त बन्द मजदूरोंके रूपमें जायें। इस रिपोर्टकी समीक्षा करते हुए हम आगे देखेंगे कि ये शर्तें उतनी ही बाध्य होंगी जितनी गिरमिट-प्रथाके अन्तर्गत होती थीं। रिपोर्टमें निम्नलिखित हास्यापद अंश भी है:

उसपर [भारतीय प्रवासीपर] किसी मालिक विशेषके ही अधीन काम करनेका बन्धन नहीं होगा; हाँ, स्वयं उसकी अपनी सुरक्षाके विचारसे प्रथम छः महीनोंके लिए उसे एक चुने हुए मालिकके यहाँ काम करना होगा।