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३९४. भाषण: बम्बई प्रान्तीय कांग्रेस समितिकी सभामें

सितम्बर २, १९१७

बहुत गरमागरम बहस हुई ... श्री गांधीने पूछनेपर बताया कि सत्याग्रह आन्दोलन कांग्रेस-जैसी किसी संस्था द्वारा नहीं चलाया जा सकता। सत्याग्रहको तो केवल अन्तः-करणका प्रश्न या आत्मिक बल कहा जा सकता है; और इसमें वकीलोंके पास जानेकी कोई जरूरत नहीं होती।

गांधी द्वारा अपना मत प्रकट कर चुकनेके बाद यह सुझाव दिया गया कि बा० गं० तिलकको गांधीसे सलाह ऐसा संशोधन प्रस्तुत करना चाहिए जो सभाको स्वीकार्य हो। इसपर गांधीने स्वयं संशोधन सुझाया लेकिन तिलकने उसे सभाके सामने प्रस्तुत करने से पहले स्वयं उसमें कुछ परिवर्तन करनेका आग्रह किया...सभापतिने तिलक और उनके दलके साथ कुछ विचार-विमर्श करने के बाद घोषणा की कि तिलक और उनके दलकी सहमतिसे संशोधनका एक मसविदा तैयार किया गया है। यह संशोधन इस प्रकार था:

हालाँकि बम्बई प्रान्तीय कांग्रेस समितिकी राय है कि सरकार द्वारा हाल ही में उठाये गये दमनकारी कदमोंके परिणामस्वरूप जनतामें सत्याग्रह आन्दोलनका समर्थन करनेकी जबर्दस्त भावना है, लेकिन उसकी सलाह है कि श्री मॉटग्यु[१] चूँकि इस देशमें आनेवाले हैं, और उनके आनेका कारण सभीको अच्छी तरह ज्ञात है, इसलिए सत्याग्रहके आधारभूत सिद्धान्तोंपर विचार करने और उनपर अपनी सम्मति प्रकट करने तथा उन सिद्धान्तोंको कार्यरूप देने के लिए आवश्यक कार्रवाई के सिलसिलेमें इस समितिपर अपने सुझाव देनेका जो उत्तरदायित्व अखिल भारतीय कांग्रेस समिति और अखिल भारतीय मुस्लिम लीगकी कौंसिल द्वारा डाला गया था, उसे फिलहाल स्थगित रखा जाये। साथ ही यह सभा आशा प्रकट करती है कि अधिकारियों द्वारा नजरबन्दी तथा अन्य दमनकारी कदम उठाने के फलस्वरूप जनतामें जो कटुताको भावना फैल गई है उसे दूर करनेके लिए सरकार आवश्यक कदम उठायेगी। ऐसा रास्ता अपनानेपर भारत-मन्त्रीको जो काम सौंपा गया है उसे वे सामान्य और शान्तिपूर्ण वातावरण में पूरा कर सकेंगे। ... यह (संशोधन) हर्षध्वनिके बीच सर्व-सम्मतिसे पास हो गया।

[अंग्रेजीसे]
बॉम्बे सीक्रेट एब्स्ट्रैक्ट्स, १९१७ पृष्ठ ६२०-२१
 
  1. १. ई० एस० मॅॉटेग्यु (१८७९-१९२४); भारत-मन्त्री (१९१७-२२); माँटेग्यु-चैम्सफोर्ड सुधारोंके सह-प्रणेता।