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निष्क्रिय प्रतिरोध नहीं, सत्याग्रह

 

रामचन्द्र और रावण

आत्मा और अनात्मा सूचक संज्ञाएँ हैं। रावणकी अतुलित शारीरिक शक्ति रामचन्द्रकी आत्मिक शक्तिके निकट किसी गिनती में ही नहीं है। रावणके दस मस्तक रामचन्द्रके सामने तृणवत् हैं। रामचन्द्र योगी पुरुष हैं, वे संयमी हैं, निरभिमानी हैं। समभाव सदा वैभव विपदा “तथा” नहि राग न लोभ मान मदा इत्यादि उनके गुण हैं। यही सत्याग्रहकी पराकाष्ठा है । इस भारत-भूमिमें सत्याग्रहकी विजय पताका फिर उड़ सकती है और उसे उड़ाना हमारा प्रधान कर्त्तव्य है। हम यदि सत्याग्रहका अवलम्बन करें तो हम अपने विजेता अंग्रेजोंको जीत लें, वे हमारी प्रवल आत्म-शक्तिके वशमें रहें और ऐसे परिणामसे संसारको लाभ पहुँचे।

यह निश्चित कि भारतवर्ष शस्त्रक्रियामें अंग्रेज अथवा यूरोपीय प्रजाकी समा- नता नहीं कर सकता। अंग्रेज प्रजा युद्ध देवकी पूजा करती है, और ऐसी स्थितिमें वे सभी शस्त्रधारी हो सकते हैं और हो रहे हैं। भारतवर्षके करोड़ों आदमी कदापि शस्त्रधारी नहीं हो सकते। उन्होंने अहिंसा धर्मका तत्त्व ग्रहण कर लिया है। भारतवर्ष में वर्णाश्रम धर्मका लोप होना असम्भव है।

वर्णाश्रम धर्म

प्रकृतिका अनिवार्य नियम है। भारतवर्ष ज्ञानपूर्वक इस धर्मका पालन कर उससे ठीक-ठीक लाभ उठाता है। भारतवर्षमें इस्लामी और अंग्रेज भाई भी थोड़ा बहुत इस धर्मका पालन करते हैं। भारतवर्षके बाहर भी अनजाने इस धर्मका पालन होता है। जबतक वर्णाश्रम-धर्म रहेगा तबतक भारतवर्ष में हरएक आदमी शस्त्रधारी नहीं हो सकता। भारतवर्ष में ब्राह्मण धर्म आत्म-शक्तिको सर्वोच्च पद दिया गया है। शस्त्रधारी भी ब्राह्मणको प्रणाम करता है। यह प्रथा जबतक चलेगी तबतक शस्त्र-क्रियामें पाश्चात्य प्रजाकी बराबरी करना हमारे लिए वृथा ही कालक्षय करना है।

अब हम समझ सकते हैं कि सत्याग्रह क्या चीज है।

यह सर्वसंकटनिवारणी संजीवनी

बूटी है। यह हमारी कामधेनु है। यह सत्याग्रही और उसके विपक्षी दोनोंको ही लाभ-दायिनी है। यह सर्वदा विजयिनी है। उदाहरणके लिए लीजिए, हरिश्चन्द्र सत्याग्रही थे, प्रह्लाद सत्याग्रही थे, मीराबाई सत्याग्रहिणी थीं। डैनियल, सॉक्रेटिस तथा वे अरब जिन्होंने फ्रेंच तोपोंकी अग्निमें अपनी आहुति दी थी, सत्याग्रही थे। इन सब दृष्टान्तोंमें हम यह देखते हैं कि सत्याग्रही अपने शरीरकी परवाह नहीं रखते, वे जिस बातको सत्य समझते हैं उसे छोड़ते नहीं, पराजयका शब्द उनके शब्द-कोषमें है ही नहीं, वे शत्रुका नाश नहीं चाहते, शत्रुपर रोष नहीं करते; किन्तु उसपर दयाभाव रखते हैं।

सत्याग्रही दूसरोंकी राह नहीं देखता, वह स्वयं अपने ही बलसे भिड़ जाता है। वह समझता है कि दूसरे भी समय आने पर वैसा ही करेंगे सत्याग्रहीका कार्य ही उसका व्याख्यान है। सत्याग्रह वायु-सा व्यापक है। वह संक्रामक है, स्पर्शजन्य है और इस कारण छोटे-बड़े, स्त्री-पुरुष सब सत्याग्रही हो सकते हैं। सत्याग्रही सेनामें किसीका बहिष्कार नहीं है, उसके द्वारा किसीपर अत्याचार नहीं हो सकता। सत्याग्रही बला-