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३९९. पत्र: भगवानजी वकीलको[१]

अहमदाबाद
भादों बदी ९ [सितम्बर ९, १९१७][२]

भाई श्री भगवानजी,

क्या आप मेरी एक मदद करेंगे? कृपया हरएक रजवाड़ेमें कहाँ-क्या खराबी है, इसपर एक संक्षिप्त नोट लिख भेजें। मुझे उसे प्रकाशित करनेकी छूट होनी चाहिए। छूट न दे सको तो भी नोट तो मुझे चाहिए। उदाहरणके लिए, सुना है कि जामनगरमें ब्राह्मणोंकी झोलीपर और भैंसके जननेपर कर लगता है। बड़वानमें हाथ-कते सुतपर तीन प्रकारका कर लगता है। मिलका सूत और कपड़ा करसे मुक्त है। ये तो मैंने स्थूल उदाहरण दिये। ये और ऐसे ही दूसरे तथा ज्यादा गम्भीर उदाहरण मुझे चाहिए। कानून तथा कानूनके [अनुचित] अमलसे होनेवाली तकलीफोंका उल्लेख करना। जल्दी भेजना। मैं जहाँ होऊँगा नोट मुझे वहाँ मिल जायेगा।

मोहनदासके वन्देमातरम्

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० ३०२४) से।

सौजन्य: नारणदास गांधी

४००. पत्र: कल्याणजी मेहताको

अहमदाबाद
[सितम्बर ११, १९१७][३]

भाई श्री

आज तो मैं मद्रासके लिए निकल रहा हूँ। ता० १७-१८ को पूना रहूँगा। ता० १९ की सुबह पूनासे चल पड़ूँगा। तब तुम मुझसे बम्बईमें मिल सकते हो। उसी तारीखको मैं नागपुर मेलसे रांचीके लिए निकल पडूँगा।

मोहनदासके वन्देमातरम्

भाईश्री कल्याणजी मेहता

पटल बंधु आफिस

सूरत

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें पोस्टकार्डपर लिखित मूल गुजराती पत्र (जी० एन०

२६६५) की फोटो-नकलसे।

  1. २. ऐसा लगता है कि यह पत्र ३-१०-१९१७ को भगवानजी वकीलको लिखे गये पत्रसे पहले लिखा गया था।
  2. १. राजकोटके भगवानजी अनूपचंद।
  3. ३. तारीख, पत्रमें यात्राका जो कार्यक्रम दिया गया है उसके आधारपर तथ की गई है।