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चम्पारन-समितिकी बैठककी कार्यवाहीसे

 

भाई नरहरिसे कहना कि प्रोफेसर बलवन्तरायने[१] गोखलेजीके भाषणोंकी प्रस्तावना लिखना स्वीकार किया है। मैं जानता हूँ कि तुम्हारी कठिनाइयोंका पार नहीं होगा। [लेकिन] कठिनाइयोंके बिना पुरुषार्थ कहाँ? तुम्हारी तबीयत-भर ठीक रहे तो मैं निश्चिन्त रहूँगा। तुम्हारी सांत्वनाके लिए आज तुम्हें तार[२] भेजा है, पहुँच गया होगा। डाक कैसे पहुँचती है सो लिखना। लोगोंके रहने और रसोई करनेके लिए तुमने क्या व्यवस्था की है।

अमृतलाल भाईका खयाल है कि लकड़ीकी चौखटके बिना वहाँ मकान बनवाना सम्भव नहीं है। आज उनका एक पत्र आया है जिसमें वे कहते हैं कि तुम्हें [मकानोंका] नक्शा वे एक-दो दिनमें भेज देंगे। मैं देखता हूँ कि मुझे अभी यहाँ दो-चार दिन और लगेंगे। बा से कहना कि मेरे विषयमें बिलकुल भी चिन्ता न करे।

बापूके आशीर्वाद

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० ५७१७) से।

सौजन्य: राधाबेन चौधरी

 

४१२. चम्पारन-समितिको बैठककी कार्यवाहीसे

रांची
सितम्बर २६, १९१७

अध्यक्षने कहा कि कल मेरी श्री हिलसे बातचीत हुई थी; परन्तु मैंने उन्हें अपने आग्रहपर दृढ़ पाया। श्री हिलने मुझसे कहा कि उनको समझमें तो श्री इविन मध्यस्थता स्वीकार नहीं करेंगे; शायद नॉर्मन कर लें। श्री हिलने यह भी कहा कि उन्होंने [लगानमें] कमीके बारेमें अपनी ओरसे जो रजामन्दी दी सो ठीक नहीं किया। बेहतर हो कि यह मामला अदालत द्वारा ही निपटाया जाये; [क्योंकि] सवाल सिर्फ रुपये-पैसेका ही नहीं है, बल्कि प्रतिष्ठाका है। [इतना कहकर] अध्यक्षने अपना यह मत प्रकट किया कि ऐसी परिस्थितिमें पंच-फैसलेका विचार कतई छोड़ देना चाहिए। परन्तु प्रश्न यह उठता है कि श्री नॉर्मनके मुकदमेके विषयमें पंच-फँसलेकी कार्रवाई जारी रखना हितकर होगा या नहीं। कठिनाई यह है कि एक ही समय में दो तरहके समझौते साथ-साथ चलते रहेंगे और उसके लिए दो तरहके विधानोंकी आवश्यकता पड़ेगी। श्री रेनीने कहा कि समितिकी सिफारिशके होते हुए भी वे अपना मामला पंचोंके द्वारा अलगसे तय करा सकते हैं और उस दशामें उनपर किसी प्रकारका

 
  1. १. प्रो० बलवन्तराय कल्याणराय ठाकोर, गांधीजीके सहपाठी; गुजराती भाषा तथा साहित्यके विद्वान् और लेखक।
  2. २. यह उपलब्ध नहीं है।