पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 13.pdf/६०१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
५६५
चम्पारन-समितिको बैठककी कार्यवाहीसे

उसके बारेमें उन्हें सन्तुष्ट नहीं कर पाये हैं। दो सरकारी गवाहों, श्री स्वीनी और श्री हेकॉकको भावना निश्चय ही रैयतके प्रति सहानुभूतिशून्य नहीं है; मेरे मनमें यह विश्वास हो गया है कि मामलेको आपने गलत ढंगसे समझा है। उसका कानूनी अर्थ भी――जहाँतक व्यक्त किया जा चुका है――आपकी धारणाके विपरीत बैठता है। श्री गांधीने कहा कि बात ऐसी नहीं है। मैं समझता हूँ कि तुरकौलियावाला फैसला मेरे पक्षमें है, क्योंकि कबूलियतें[१] कुछ ही मामलोंमें पेश की जा सकती हैं, सबमें नहीं। अध्यक्षने कहा कि श्री हिलने मुझे बताया है कि जहाँतक तुरकौलियावालोंका सम्बन्ध है, वे कोई खतरा मोल नहीं ले रहे हैं। क्योंकि अधिकांश मामलोंमें पंजीकृत कबूलियतें मौजूद हैं। श्री हिलने भी मुझे बताया है कि वे बड़ेसे-बड़े वकीलोंकी सलाह ले चुके हैं। और उनकी समझमें इस मुकदमेंमें उनकी जीत लगभग निश्चित ही है। श्री गांधीने कहा कि रैयतके दिलोंमें भी बहुत भरोसा है, परन्तु वही मेरे अनुमानका आधार नहीं है। इस मामलेमें मेरी जीत होगी मेरा यह इत्मीनान मामलेकी न्याय-संगतिपर आधारित है। मेरा खयाल है कि दुर्भाग्यसे श्री स्वीनीके विचार सही नहीं हैं और बादमें व्यक्त किये गये उनके विचारोंपर इस बातका असर पड़ा है कि वे अपने पुराने निर्णयको बदलना नहीं चाहते थे। अध्यक्षने कहा कि श्री हिलका खयाल है कि आम चर्चाकी वजहसे उनको ख्यातिपर आँच आई है। इस कारण वे न्यायाधिकरण [की नियुक्ति] का स्वागत करेंगे; इससे उन्हें अपनी सफाई पेश करनेका अवसर हाथ आ जायेगा। श्री गांधीने कहा कि यदि ऐसी बात है तो न्यायाधिकरणको नियुक्ति जरूरी ही मानी जानी चाहिए और इस कारण भी कि श्री इर्विनने जो वचन दिया था उसके लिए उन्हें खेद है। इसका कारण यह है कि इस वचनके आधारपर समझौता हो जानेपर भी थोड़ा-बहुत असन्तोष बना ही रहेगा। और मैं इस सूरतको पैदा नहीं होने देना चाहता। अध्यक्षने कहा कि मेरा ऐसा खयाल नहीं है कि श्री इविनके वायदेके सम्बन्धमें स्थिति पूरी तौरपर समझी जा चुकी है। बागान-मालिक कटौतीके लिए तैयार जरूर हुए हैं, परन्तु इसलिए नहीं कि उनका यह खयाल हो गया है कि हमारा पूरा दावा ही गलत है, बल्कि समितिको इच्छाओंका आदर करनेकी गरजसे तथा इसलिए कि वे सबकी सहमतिसे किये गये समझौतेको हासिल करनेके निमित्त कुछ अंशका त्याग करना पसन्द करते हैं। इसलिए यह मान बैठनेका कोई कारण नहीं है कि इन शर्तोंके साथ किये गये समझौतेपर असन्तोष होगा। इसपर श्री गांधीने श्री हिलके दिलकी बात जानने तथा उन्हें अपनी स्थिति साफ करनेका अवसर देनेके अभिप्रायसे उनके पास जाने और उनसे मिलनेका प्रस्ताव [समितिके सामने] रखा। अध्यक्षने कहा, तो मैं यह समझ लूँ कि यदि आप [श्री गांधी] श्री हिलके रुखको दिलसे न्यायपूर्ण ठहराते हैं तो आप उनका प्रस्ताव मान लेंगे। श्री गांधीने कहा कि मेरे कथनका अभिप्राय यह नहीं है; मेरा

 
  1. १. लगान चुकानेका इकरार।