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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

 

हमें अपनी जाँचसे पूरा विश्वास हो गया है कि किसानों में इस लगान-वृद्धिसे बहुत कटुता है और उसको रद करवानेके लिए समस्त कानूनी उपाय किये जायेंगे। कानून न बनाया जायेगा तो ऐसा लगता है कि लम्बी मुकदमेबाजी होगी और बहुत खर्च होगा। यह मुकदमेबाजी भले ही खत्म हो जाये, किन्तु इसके फलस्वरूप दोनों पक्षोंमें कटुताकी स्थायी भावना उत्पन्न हो जायेगी। हमारा खयाल यह भी है कि इस कठिन प्रश्नके सम्बन्धमें जमींदारों और किसानोंमें तत्काल समझौता हो जाना अत्यन्त वांछनीय है। इन स्थितियोंमें हमें यह बहुत ही जरूरी जान पड़ता है कि सम्भव हो तो शान्ति और सद्भावकी खातिर दोनों पक्षोंमें आपसी आदान-प्रदानकी भावनासे और पारस्परिक सहमतिसे समझौता करा दिया जाये। इसी उद्देश्यसे हमने तीन मुख्य कोठियोंके प्रतिनिधियोंसे बातचीत की थी और हमें यह सूचित करते हुए हर्ष होता है कि हमें अपने प्रयत्नों में सफलता मिली है। २९ नवम्बरको रांचीमें हमारी एक बैठक हुई थी जिसमें सर्व श्री हिल, इविन और नॉर्मन जो तुरकौलिया लिमिटेड, मोतीहारी लिमिटेड और पीपरा कोठीके मैनेजर हैं, उपस्थित थे और श्री गांधी किसानोंके स्वार्थोंका प्रतिनिधित्व कर रहे थे। निम्न मुद्दोंपर समझौता हो गया है:

(१) शरहबेशी द्वारा जो लगान-वृद्धि हुई है, वह फसली सन् १३२५ (अक्तूबर,१९१७) से तुरकौलिया लिमिटेडके मामलेमें २० प्रतिशत और मोतीहारी लिमिटेड तथा पीपरा संस्थानके सम्बन्धमें २६ प्रतिशत घटा दी जायेगी, किन्तु १३२५ फसलीके पूर्वतक लगान सर्वे-बन्दोबस्तवाली दरोंपर ज्योंके-त्यों बने रहेंगे।
(२) सर्वे रेकर्डमें दर्ज नील-सम्बन्धी मौजूदा दायित्व फसली सन् १३२५के प्रारम्भके साथ ही समाप्त कर दिया जायेगा, और उसके बदले बढ़ा हुआ लगान (शरहबेशी), जिस दरपर वह अन्य लोगोंके साथ-साथ इनके मामले में भी राहतकी व्यवस्था [कम्यूटेशन] कर देनेपर होता, उस दरपर निर्धारित किया जायेगा, और फिर उसमें समझौतेके अनुसार जितनी कमी करना तय हुआ है, उतनी कमी कर दी जायेगी।

काश्तकारोंके प्रतिनिधिकी हैसियतसे हमारे सहयोगी श्री गांधी इस व्यवस्थाको एक सन्तोषजनक समझौतेके रूपमें पूरी तरह स्वीकार करते हैं, और यह वचन देते हैं कि वे इसे ईमानदारीके साथ स्वीकार करने तथा बागान-मालिकों और काश्तकारोंके सम्बन्धोंको भविष्य में शान्तिपूर्ण बनानेके लिए काश्तकारोंपर अपने प्रभावका पूरा उपयोग करेंगे। इस समझौतेके साथ एक शर्त जुड़ी हुई है कि कानून द्वारा इसे पूरी तरह बन्धनकारी रूप दिया जाये। हम इस समझौतेको, सम्बन्धित सभी पक्षोंके लिए न्यायोचित मानते हैं, और इसलिए सिफारिश करते हैं कि पारस्परिक सहमतिसे सम्पन्न किये गये इस समझौतेको आपात्कालीन विधि-निर्माण द्वारा सभी सम्बन्धित पक्षोंके लिए बन्धनकारी बनानेकी दृष्टि से तुरन्त कार्रवाई की जानी चाहिए।

जहाँतक जलहा और सिरनीके संस्थानोंका सवाल है, यद्यपि वे पारस्परिक सहमतिसे सम्पन्न इस समझौते में शामिल नहीं हैं, फिर भी हमारी सिफारिश है कि इनके मामले में