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परिशिष्ट

 

कुछ संस्थानोंने, जिनमें सबसे महत्त्वपूर्ण राजपुर है, स्थायी पट्टेवाले गांवों में भी तावान लिया था। इस तथ्यको ध्यान में रखते हुए कि पारस्परिक सहमतिसे सम्पादित समझौतेमें भावी शान्ति-सद्भावनाकी दृष्टिसे शरहबेशीमें कुछ कमी करना तय हुआ है, हमारा खयाल है कि स्थानीय सरकार मुकर्ररीदारोंको ऐसे ही आधारपर तावानकी रकमका एक हिस्सा वापस कर देनेकी सलाह दे। राजपुर संस्थानने तावानकी दर बहुत कम रखी, इस बातका खयाल रखते हुए हमारा विचार है कि दस प्रतिशतकी कमी करना पर्याप्त होगा।

राजघाट संस्थानका विशेष मामला

१२. और अन्तमें हम राजघाट फैक्टरी (प्रबन्धक, श्री एपरले) के विशिष्ट मामलेकी चर्चा करना चाहते हैं। वहाँ काश्तकारीकी किसी शर्तका दावा तो नहीं किया जाता, किन्तु काश्तकारोंने इस आशयका अनुबन्ध किया था कि लगान-वृद्धिसे मुक्त रहनेके बदलेमें वे नील पैदा किया करेंगे। इन अनुबन्धोंकी अवधि समाप्त होनेपर पारस्परिक सहमतिसे यह व्यवस्था कायम रखी गई, और फलतः जब नये बन्दोबस्तके दौरान उचित समय आया तो इस फैक्टरीने लगान-वृद्धिके लिए अर्जी नहीं दी। हमारी स्थानीय जाँच-पड़तालके सिलसिलेमें काश्तकारोंने हमें बताया कि वे अब नील-उत्पादनके दायित्वसे मुक्त होना चाहते हैं। इन परिस्थितियोंमें यह सर्वथा उचित है कि इस फैक्टरीको बन्दोबस्ती प्रक्रियाके अनुसार आम लगान-वृद्धिके लिए अर्जी देनेकी सुविधा दी जाये; किन्तु चूँकि बंगाल काश्तकारी कानून [टेनेंसी ऐक्ट] के खण्ड १०५ के अनुसार इस प्रक्रिया की कालावधि पहले ही समाप्त हो चुकी है, इसलिए जबतक सरकार उक्त कानूनके खण्ड ११२ के अधीन कार्रवाई नहीं करती तबतक यह असम्भव है। यदि यह उपाय कारगर न हो सके तो हमारी सिफारिश है कि जो विशेष कानून बनाया जाये, उसमें एक ऐसी धारा शामिल कर ली जाये जिसके आधारपर यह संस्थान खण्ड १०५ का लाभ उठा सके।

अध्याय ३

अबवाब और ठीका-पट्टोंका नवीकरण

‘अबवाब’

१३. हमारी जाँचसे पता चलता है कि अभी हालतक इस जिलेके पश्चिमोत्तर हिस्से में गैर-निलहे संस्थानोंके ठेकेदार काश्तकारोंसे दर्ज किये गये लगानके अलावा भी कुछ रकमें नियमपूर्वक वसूल करते थे। ये अनिधिकृत दातव्य आम तौरपर अबवाबके नामसे जाने जाते हैं। १७९३ के दस-साला बन्दोबस्तके विनियम ८ के खण्ड ५४ के अनुसार अबवाब लगाना वर्जित है। इस विनियममें स्पष्ट रूपसे यह विधान कर दिया गया है कि सभी जमींदारोंको एक निश्चित तिथिके भीतर अबवाबकी रकमको लगानके साथ मिलाकर एक कर देना पड़ेगा, और यदि कोई अंबवाब लगायेगा तो वह जुर्मानेका भागी होगा। फिर १८५९ के कानून १० के खण्ड १० तथा १८८५ के

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