काश्तकारों या ऊपरके जमींदारोंके हितोंके लिए हानिकर सिद्ध हुए हैं तो पट्टा नया करनेसे पहले उसके आचरणकी जाँच-परख कर लेनी चाहिए। जिन मामलोंमें कोर्ट ऑफ वार्ड्स पट्टोंको नया करनेका निर्णय दे, उन मामलोंमें, हमारा खयाल है, अल्प अवधिके पट्टे देनेकी अपेक्षा एक बन्धन लगाकर अपेक्षाकृत लम्बी अवधिके पट्टे देना अधिक अच्छा होगा, और वह बन्धन यह रहे कि पट्टोंकी शर्तें तोड़नेपर वे रद माने जायेंगे। इन परि स्थितियों में पट्टेदारोंको इस दृष्टिसे पर्याप्त कमीशन दिया जाये कि उन्हें वसूलीका (जिन पिछले बकायोंकी वसूली दुस्साध्य हो उनकी वसूलीका भी) खर्च और अपने लिए एक समुचित पारिश्रमिक मिल सके। जबतक राज अपने ठेकेदारोंको उचित शर्तोपर लाभ नहीं देता तबतक वह इस कारणसे उत्पन्न बुराइयोंकी सारी जिम्मेदारीसे अपनेको नहीं बचा सकता। उचित कमीशन क्या होगा, इसका हिसाब, निःसन्देह, हर पट्टके सम्बन्धमें लगाया जा सकता है। दूसरी ओर, जहाँ ठेकेदारको दिया जानेवाला कमीशन सीधी व्यवस्थाके अनुमानित खर्चसे अधिक हो, वहाँ पट्टेको इन शर्तोंपर नया करनेके लिए उस मामलेकी खूबियोंके आधारपर कोई विशिष्ट औचित्य होना चाहिए। और अन्तमें, पट्टोंमें समितिकी ऐसी सिफारिशोंको लागू करनेकी शर्तें होनी चाहिए जिन्हें सरकार स्वीकार कर ले। इनमें विशेष रूपसे ये शर्तें भी शामिल रहें कि अगर काश्तकार स्वयं न चाहे तो नील नहीं उपजाया जाये और किसी प्रकारके अबवाव भी नहीं वसूले जायें। हमारा खयाल है कि राज ठेका-व्यवस्थाके अन्तर्गत आनेवाले गाँवोंके हित-साधनके लिए भी अपने-आपको जिम्मेदार माने, और जब भी उनके हित खतरेमें पड़ जायें तो वह उसके निराकरणको भी अपना दायित्व समझे।
अध्याय ४
काश्तकारोंकी अन्य शिकायतें
हस्तान्तरणपर शुल्क
१६. अब हमें कुछ अन्य बातोंपर विचार करना शेष है। इनमें से कुछ वे हैं जो अतीतमें परेशानियोंका कारण रही हैं और कुछका सम्बन्ध ऐसे सुझावोंसे है, जो भूमि-व्यवस्थामें सुधार लानेकी दृष्टि से पेश किये जा रहे हैं। पहली बात है, दखली जोतके हस्तान्तरण पर ली जानेवाली फीस। जहाँतक उत्तराधिकार द्वारा स्वामित्व हस्तान्तरणका सवाल है, यह फीस गैर-कानूनी है, क्योंकि बंगाल काश्तकारी कानूनके खण्ड २६ की रूसे कारत-कारोंको हस्तान्तरणका अधिकार प्राप्त है, और इस अधिकारके विरुद्ध कोई दस्तूर कायम नहीं है। ऐसे शुल्कोंका उल्लेख बपही-पुतही नामसे परिच्छेद ३ में अबवावके रूपमें किया जा चुका है। और जहाँतक उत्तराधिकारसे भिन्न नियमोंके अन्तर्गत होनेवाले हस्तान्तरणोंका प्रश्न है, यह ध्यान देने योग्य बात है कि किसी जोतका एक अंश किसी अन्यके नाम हस्तान्तरित करनेके लिए कानूनन जमींदारकी स्वीकृति लेनी आवश्यक है, क्योंकि इसमें काश्तकारीके अन्तविभाजनका सवाल उठता है (खण्ड ८८,