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परिशिष्ट १३

चम्पारन कृषीय विधेयक, १९१७

(परिषद द्वारा पारित रूपमें)

चम्पारन जिलेमें

कुछ कृषीय विवादोंके निबटारे और निर्धारणके लिए

एक विधेयक

चूँकि चम्पारन जिलेमें रहनेवाले भू-स्वामियों और उनकी भूमिपर काश्त करनेवाले किसानोंके बीच कुछ मामलोंके सम्बन्धमें चल रहे विवादोंका निबटारा और निर्धारण वांछनीय है;

और चूँकि भारत सरकारसे इस अधिनियमको पारित करनेकी मंजूरी भारत सरकार अधिनियम, १९१५ के खण्ड ७९ के अन्तर्गत पहले ली जा चुकी है।

इसलिए इसके द्वारा निम्नलिखित अधिनियम बनाया जाता है:

संक्षिप्त नाम और क्षेत्र

१. (१) इस अधिनियमका नाम चम्पारन कृषीय अधिनियम १९१८ होगा।
(२) यह चम्पारन जिलेपर लागू होगा।

व्याख्यात्मक धारा

२. बंगाल काश्तकारी कानून, १८८५ में पारिभाषित इस अधिनियमके सभी शब्दों और शब्द समुच्चयोंका अर्थ वही होगा जो उस अधिनियममें उनको दिया गया था और

“रेकर्ड ऑफ राइट्स” (अधिकार-सूची) का अर्थ होगा बंगाल काश्तकारी कानून, १८८५ के खण्ड १०३ के उपखण्ड (२) के अन्तर्गत अन्तिम रूपसे प्रकाशित ‘रेकर्ड ऑफ राइट्स’।

कुछ शर्तों और आरोपणोंकी मंसूखी

३. (१) इस अधिनियमके लागू होनेपर और इसके पश्चात् किसी भूस्वामी और उसके काश्तकारके बीच हुआ कोई भी ऐसा समझौता, पट्टा या अन्य अनुबन्ध, जिसमें उसकी काश्तकी भूमि या उसका कोई हिस्सा किसी फसल विशेषकी खेतीके लिए अलग रखनेकी शर्त सम्मिलित हो, उस शर्तकी हदतक प्रभावहीन माना जायेगा:

शर्त यह है कि यदि काश्तकारने यह अधिनियम लागू होनेके पहले किसी समझौते, पट्टे या अनुबन्धके अन्तर्गत ऐसी शर्तके बदले कोई पेशगी रकम ली हो तो उसे वापस करनी पड़ेगी। या यदि शर्त आंशिक रूपसे पूरी की जा चुकी हो तो उस पेशगी रकमका उतना हिस्सा वापस करना पड़ेगा जितना कि बिना पूरी की हुई शर्तके बराबर बैठता हो, और वापस की जानेवाली कथित पेशगी रकम या उसके अनुपातका