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सम्पूर्ण गांधी वाङ‍्मय


२. क्या हिन्दी कांग्रेसके आगामी अधिवेशनमें मुख्यतः उपयोगमें लाई जानेवाली भाषा न होनी चाहिए?

३. क्या हमारे विद्यालयों और महाविद्यालयोंमें ऊँची शिक्षा देशी भाषाओंके माध्यमसे देना वांछनीय और सम्भव नहीं है? और क्या हमें प्रारम्भिक शिक्षाके बाद अपने विद्यालयोंमें हिन्दीको अनिवार्य द्वितीय भाषा नहीं बना देना चाहिए?

मैं महसूस करता हूँ कि यदि हमें जनसाधारण तक पहुँचना है और यदि राष्ट्रीय सेवकोंको सारे भारतवर्षके जनसाधारणसे सम्पर्क करना है तो उपर्युक्त प्रश्न तुरन्त हल किये जाने चाहिए और उन्हें अत्यन्त आवश्यक समझकर उनपर विचार किया जाना चाहिए। क्या आप कृपया जल्दीसे-जल्दी उत्तर देकर मुझे अनुगृहीत करेंगे?[१]

हृदयसे आपका,
मो॰ क॰ गांधी

महादेव देसाई द्वारा लिखित तथा गांधीजीके हस्ताक्षर-युक्त मूल अंग्रेजी पत्र (जी॰ एन॰ २७६५) की फोटो-नकलसे।

८६. पत्र : एक मित्रको

[मोतीहारी]
जनवरी २१,१९१८

मेरे भाषणों और लेखोंकी पुस्तककी[२] प्रस्तावना कौन लिखे, अथवा उसकी आवश्यकता है या नहीं, इस प्रश्नका निर्णय प्रकाशकका नाम और उद्देश्य जानने के बाद किया जा सकता है। यदि उसे कोई प्रकाशक रुपये कमानेकी नीयतसे छपवाये, तो उसके लिए सरोजिनीकी[३] प्रस्तावनाकी जरूरत होगी। यदि कोई श्रद्धालु वैष्णव छपवाए, तो वह जरूर रणछोड़भाईके[४] पास जाये। यदि मेरे लेख आदि किसी ऐसे तीसरे व्यक्तिके हाथोंमें हों जो मुझसे अपरिचित हो और वह किसीसे पुस्तककी बिक्री सुनिश्चित करा लेना चाहे, तो मेरे मित्र अर्थात् डॉक्टर मेहताको ढूँढ़े। यदि तुम या मथुरादास मालिक बनो, तो प्रस्तावना होगी ही नहीं। अभी फिलहाल तो मैं फेलिक्स सरकसके जानवरोंकी तरह प्रसिद्ध हूँ। इसलिए उक्त कारणोंके अतिरिक्त किसी अन्य कारणसे मेरे ऊपर किसीकी छाप लगानेकी आवश्यकता नहीं रहती। जहाँ ज्वार आ रहा हो, वहाँ मेरे विचारोंके समुद्रमें, जितने आदमी डुबकी लगा सकें, जल्दीसे लगा लें, इस प्रकाशनका वास्तविक

 
  1. रवीन्द्रनाथ ठाकुरने उत्तर में लिखा था: "वास्तवमें भारतमें अन्तर्प्रान्तीय व्यवहारके लिए उपयुक्त राष्ट्रीय भाषा हिन्दी ही है। किन्तु...मैं समझता हूँ कि दीर्घकाल तक हम इसे लागू नहीं कर सकते।"
  2. मथुरादास विकमजी द्वारा सम्पादित महात्मा गांधीनी विचारसृष्टि।
  3. सरोजिनी नायडू।
  4. रणछोड़लाल पटवारी।