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१०२. भाषण : खेड़ाकी स्थितिपर[१]

बम्बई
फरवरी ४, १९१८

मैं ज्यादा नहीं कहना चाहता। मुझे एक पत्र मिला है, जिसमें मुझसे कहा गया है कि मैं कलके उस शिष्टमण्डलके[२] बीच उपस्थित रहूँ जो परमश्रेष्ठ गवर्नर महोदयसे भेंट करने जा रहा है। मुझे विश्वास है कि मैं वास्तविक तथ्य समझा सकूँगा। फिर भी मुझे यह स्पष्ट कर देना चाहिए कि गुजरात-सभाने जो विज्ञप्ति[३] जारी की है, उसका उत्तरदायित्व मुझपर है। इस विज्ञप्तिके जारी किये जानेके पूर्व ही मैं अहमदाबाद पहुँच गया था, जहाँ खेड़ा जिलेकी स्थितिपर विचार-विमर्श हो रहा था, और इसी विचार-विमर्शके दौरान यह निर्णय किया गया कि इस मामलेमें गुजरात सभाको भाग लेना चाहिए। मेरा खयाल है कि इस विज्ञप्तिको लेकर तिलका ताड़ बनाया गया है। जब विज्ञप्ति तैयार की जा रही थी, उस समय सभीको मालूम था कि वह क्या है। तब किसीने स्वप्न में भी यह नहीं सोचा था कि सरकार इसका गलत अर्थ लगायेगी। सभाके पास लोगोंकी दुर्दशाके बारेमें काफी सामग्री थी। उसे मालूम हुआ कि सरकारी अधिकारी लगान एकत्र कर रहे हैं और लोग लगान देनेके लिए अपने मवेशियों तक को बेच रहे हैं। मामला इस नाजुक स्थिति तक पहुँच गया था, और सभाको इसकी जानकारी भी थी; इसलिए उसने, जो लोग इन कठिनाइयोंको झेल रहे थे, उन्हें सान्त्वना देनेके लिए एक विज्ञप्ति जारी करना उचित समझा। यह विज्ञप्ति उसी जानकारीका परिणाम थी, और मुझे पूरी आशा है कि जो शिष्टमण्डल गवर्नरसे भेंट करने जा रहा है उसकी बातचीतका परिणाम लोगोंकी सफलताके रूपमें ही प्रकट होगा।

यदि कमिश्नर हमसे नाराज न होते तथा जो शिष्टमण्डल उनसे भेंट करने गया था, वे उसके साथ नम्रतासे बातें करते और यदि उन्होंने बम्बई सरकारको गलत निर्देश न दिया होता तो ऐसा भयानक संकट उपस्थित न हुआ होता, और हमें आज सायंकाल यहाँपर एकत्र होनेका कष्ट न उठाना पड़ता। सभाने निवेदन किया था कि बातचीत समाप्त होनेतक बकाया वसूलीका काम रोक रखा जाये। किन्तु सरकारने यह उचित मार्ग नहीं अपनाया और एक रोष-भरी प्रेस-सूचना जारी कर दी। मेरा यह दृढ़ विश्वास था—और अब भी है—कि जनता तथा सरकार दोनोंके प्रतिनिधि मिलजुलकर उपयुक्त कदम उठा सकते थे। किन्तु मुझे दुःखके साथ कहना पड़ता है कि

 
  1. यह सार्वजनिक सभा मूलजी जेठा मार्केटमें हुई थी। इसमें मुख्यतः दूकानदारों और व्यापारियोंने भाग लिया था। जमनादास ठाकुरदासने सभाकी अध्यक्षता की थी।
  2. इसमें गांधीजीके अतिरिक्त विठ्ठलभाई पटेल, दिनशा वाछा तथा गोकुलदास पारेख भी शामिल हुए थे। शिष्टमण्डलकी बातचीतकी कोई रिपोर्ट उपलब्ध नहीं है।
  3. विज्ञप्ति १० जनवरीको खेड़ा जिलेके किसानोंमें प्रचारित की गई थी। इसमें उन्हें लगान न देने की सलाह दी गई थी।