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'नवजीवन' को स्थिति

लेखकी माँग की तब उन्होंने उसे ढूँढ़कर उसमें कुछ और सामग्री जोड़कर एक सम्पूर्ण काव्यके रूपमें मुझे भेंट किया। मूल लेख बँगलामें है। उसका अनुवाद करते समय कठिनाईका सामना करना पड़ा इसीसे 'नवजीवन' के प्रकाशन में विलम्ब हुआ। इस लेख में से दो-तीन अर्थ निकाले जा सकते है। पाठकोंको मेरी सलाह है कि वे इस लेखको दो-चार बार पढ़ जायें और आकण्ठ इसका रस-पान करें ऐसा करते हुए वे पायेंगे कि इसमें रसका अक्षय भण्डार निहित है।

यह विषयान्तर हो गया है। आजकल 'नवजीवन' घाटे में चल रहा है। एक प्रतिका लागत मूल्य सोलह पाई पड़ता है, उसमें कागज आठ पाईका होना चाहिए। हमने आरम्भसे ही अच्छे कागजका उपयोग किया है, इससे अब उसके बदले हलका कागज लगाने की इच्छा नहीं होती। अतएव इसके आकारको कम करके कुछ बचत करनेका निश्चय किया गया है। सोलह पृष्ठोंके स्थानपर इस बार बारह पृष्ठ दिये गए हैं। लेकिन इस तरह चार पाई भी नहीं बचती। इसलिए बम्बई और अहमदाबादमें प्रत्येक प्रतिका मूल्य चार पैसेके बदले पाँच पैसे रखनेका निश्चय किया गया है। इससे घाटा होना बन्द हो जाएगा। पाठक समझ जायेंगे कि जबतक हमें 'नवजीवन'का लागत मूल्य नहीं मिलता और हमें नुकसान उठाना पड़ रहा है तबतक ग्राहकोंकी संख्या बढ़ाने का अर्थ और भी अधिक नुकसान उठाना होगा। परिणामत: वर्तमान स्थिति में ग्राहकसंख्या बढ़ाने की बात भी नहीं सोची जा सकती।

'नवजीवन' आरम्भ करते समय हमने आठ पृष्ठ देनकी प्रतिज्ञा की थी, लेकिन परिस्थितियोंको अनुकूल पा यह संख्या सोलह कर दी गई है। आगे भी पाठकोंको आठसे अधिक पृष्ठोंका 'नवजीवन' मिलता रहेगा। इसके साथ ही में यह भी कहना चाहूँगा कि स्थानाभावके कारण विषय छोड़े नहीं जाएंगे, बल्कि विशेष प्रयत्नसे संक्षेपमें लेख प्रकाशित करके उतने ही विषयोंको समाविष्ट करनेका प्रयत्न किया जाएगा। अनेक बार समाचारपत्रोंमें निश्चित पृष्ठसंख्या भरने की दृष्टिसे ही लम्बे-लम्बे लेख लिखे जाते हैं। लेखक उतावलीके कारण लेखमें प्रायः अपने विचारोंको अच्छी तरह और व्यवस्थित रूपसे प्रस्तुत नहीं कर पाता। पाठकोंको उन्हें समझने में दिक्कत होती है अथवा जो विचार आसानीसे ग्राह्य हो सकते हैं उन्हें इस तरह घुमा-फिराकर लिखा जाता है कि उन्हें समझने में बहुत कोशिश करनी पड़ती है। इसलिए मैं आशा करता हूँ कि जो लेखक 'नवजीवन' में अपनी रचनाएँ भेजते हैं उन्हें वे और भी संक्षेपमें लिखेंगे तथा अपनेको 'नवजीवन'का मालिक समझकर इसकी उन्नतिमें अपना सहयोग दें। 'नवजीवन' को प्रकाशित करनेका उद्देश्य व्यवसाय करना नहीं है, अपितु उसके माध्यमसे जनताकी थोड़ी-बहुत सेवा करना, और जनतामें नवजीवनका संचार हो जानेपर उसे यथाशक्ति सरल और सीवी राह बताते हुए जटिल प्रश्नोंको सुलझाने में मदद करना है।

अतएव उम्मीद है 'नवजीवन' के लेखक अपनी रचनाओंको संक्षेपमें प्रस्तुत करते समय इस बातका ध्यान रखेंगे कि संक्षिप्तीकरणसे विषयवस्तुमें कोई कमी न आए।

जब कागजके भाव गिर जाएँ अथवा नवजीवन प्रेस अथवा कार्यालय में हम सबकी अपूर्णताके कारण जो नुकसान उठाना पड़ रहा है, यदि हम उसमें कुछ परिवर्तन। कर सके तो अवश्य करेंगे और तब 'नवजीवन' के पृष्ठोंकी संख्या फिरसे सोलह