पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 17.pdf/११०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
८२
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

एकमात्र कसौटी स्वेच्छया किया गया असह्योग ही है। सैनिकोंको काम करनेसे इनकार करने की सलाह देना अभी जल्दबाजी होगी। यह आखिरी कदम है, पहला नहीं। हमें यह कदम उठानेका अधिकार तब होगा जब वाइसराय, भारत मंत्री तथा प्रधान मन्त्री हमें असहाय छोड़ देंगे। इसके अलावा सहयोग करना बन्द करने की दिशामें जो भी कदम उठाया जाये, बहुत सोच-समझकर उठाया जाये। हमें धीरे-धीरे आगे बढ़ना चाहिए ताकि हम बड़ीसे-बड़ी उत्तेजनाके बीच भी अपनेको संयत रख सकें।

बहुत-से लोग कलकत्तेके प्रस्तावोंको[१] बड़ी चिन्तित दृष्टि से देखते हैं। उन्हें इसमें हिसाकी तैयारीकी गंध आती है। मैं उन्हें इस रूप में नहीं देखता, हालाँकि उनमें से कुछ प्रस्तावोंका स्वर मुझे पसन्द नहीं है। जिनकी विषय-वस्तुको में पूरी तरह नापसन्द करता हूँ उनका जिक्र तो पहले ही कर चुका हूँ।

"क्या हिन्दू ये सभी प्रस्ताव स्वीकार कर सकते हैं?" कुछ लोग ऐसा सवाल पूछते हैं। मैं तो सिर्फ अपनी ही बात कह सकता हूँ। और वह यह है कि जबतक हमारे मुसलमान भाई पर्याप्त संयमसे काम लेते रहेंगे और जबतक मुझे इस बातका भरोसा रहेगा कि वे हिंसाका सहारा लेना या उसका समर्थन करना नहीं चाहते तब-तक मैं उनकी न्यायसम्मत माँगोंकी पूर्तिके प्रयत्न में उनसे हार्दिक सह्योग करता रहूँगा। लेकिन जिस क्षण देखूगा कि सचमुच हिंसा को गई है या हिंसा करने की सलाह दी गई है अथवा उसका समर्थन किया गया है उसी क्षण में सहयोग बन्द कर दूँगा तथा प्रत्येक हिन्दू, और हिन्दू ही क्यों, अन्य लोगोंको भी सहयोगसे हाथ खींच लेनेकी सलाह दूँगा। इसलिए मैं सभी वक्ताओंसे अनुरोध करूँगा कि वे गम्भीरसे-गम्भीर उत्तेजनाके क्षणोंमें भी अधिकसे-अधिक संयमसे काम लें। अगर दृढ़ताके साथ-साथ नम्रता भी बरती जाये तो विजय निश्चित है। लेकिन अगर क्रोध, घृणा, दुर्भावना, अविवेक और अन्ततः हिंसाका बोलबाला हो जाता है तब तो यह उद्देश्य निष्फल होकर ही रहेगा। अगर मुझे अकेले भी खड़ा रहना पड़ा तो में जानकी बाजी लगाकर उनका प्रतिरोध करूँगा। मेरा लक्ष्य संसारसे मैत्री है और में अन्यायका प्रबलतम विरोध करते हुए भी दुनियाको अधिकसे-अधिक स्नेह दे सकता हूँ।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, १०-३-१९२०
  1. २९ फरवरी, १९२० को आयोजित खिलाफत सम्मेलनमें पास किये गये प्रस्ताव।