सत्याग्रहके सिद्धान्तका जैसा निरूपण श्री गांधीने किया है, उसके अनुसार एक सैद्धान्तिक प्रस्थापनाके रूपमें वह सुस्पष्ट और समझमें आनेवाला प्रतीत होता है। किन्तु इसे जीवनके हर क्षेत्र में व्यावहारिक रूप दे सकना उतना आसान नहीं है जितना कि पहली नजरमें लगता है। ऐसे सत्याग्रहका आचरण करने के लिए धैर्य और आत्मनियन्त्रणका काफी अभ्यास होना बहुत जरूरी है। और ये गुण ऐसे हैं जो व्यवहारतः उस समय सबसे कम नजर आते हैं जब उनकी सबसे ज्यादा जरूरत होती है। यदि सत्याग्रहको एक दैनिक आचरणके सिद्वान्तके रूपमें बहुत सारे लोगोंके लिए स्वीकार्य होना हो तब तो यह जरूरी है कि सत्याग्रहका सिद्धान्त ऐसा हो जिसपर औसत दर्जेका आदमी भी आचरण कर सके। लेकिन औसत आदमी तो जब किसी अन्यायसे क्षुब्ध होता है तब आत्मबलिदान करनेकी अपेक्षा हिंसा करने के लिए ही ज्यादा तत्पर होता है। श्री गांधीका जवाब यह है कि पारिवारिक दायरेमें लोग ऐसा धैर्य अक्सर बरतते हैं। श्री गांधी तो सिर्फ यही चाहते हैं कि वे ऐसा ही धैर्य-भाव राजनीतिके दायरे में भी बरतने लगें।
बहरहाल, इस जगह सत्याग्रहकी व्यवहारिकतापर और अधिक विचार करनेकी जरूरत नहीं है। इतना स्पष्ट है कि इस प्रकारके हानिरहित सिद्धान्तके प्रचारसे समाजका केवल भला ही हो सकता है। और सैकड़ों आदमियोंसे हमने जो पूछताछ की है, उसके आधारपर हम पूरे विश्वासके साथ कह सकते हैं कि यदि आन्दोलनमें भाग लेनेवाले लोगोंमें सत्याग्रहकी भावना व्याप्त न होती तो परिणाम अपेक्षाकृत बहुत ज्यादा भयंकर होते। भारतके अन्य भागोंमें जनताने जैसा अनुकरणीय आत्म-नियन्त्रण दिखाया वह यह नहीं सिद्ध करता कि स्वभावमें वे पंजाबियोंसे बहुत अधिक भिन्न है, बल्कि यह सिद्ध करता है कि सत्याग्रहका संयतकारी प्रभाव इतना प्रबल था कि वह सरकार द्वारा भारतपर रौलट अधिनियम थोपे जानेके विरुद्ध जनताके क्रोधको नियन्त्रणमें रख सका। यदि राज्यके कानूनोंका उल्लंघन करते समय जनता संयम और अनुशासन छोड़े बिना अपने रोष और विरोधको अभिव्यक्त कर पाई होती तो बहुत मुमकिन है कि सरकार बहुत पहले ही जनताकी इच्छाके सामने झुक जाती।
किन्तु लोगोंमें जो सत्याग्रहकी भावना थी पंजाब सरकारने उसकी इतनी कड़ी परख की कि उसके लिए सत्याग्रहका संयतकारी प्रभाव भी अपर्याप्त सिद्ध हुआ। यदि सर माइकेल ओ'डायरने सत्याग्रहके संयतकारी प्रभावको समझा होता और जनताके साथ सहयोग किया होता, जैसा कि अन्य प्रान्तोंकी सरकारोंने कमोबेश किया, तो पंजाबको जो भयंकर कष्ट सहने पड़े वे न सहने पड़ते और गत कुछ महीनोंका इतिहास कुछ और ही होता।
हम यह मानते हैं कि सत्याग्रहका सही आचरण किया जाये तो जनतापर पशुबलसे शासन कर सकना असम्भव हो जायेगा, और इसीलिए, जिन कानूनोंको जनता नापसन्द करे, उन कानूनोंको कारगर ढंगसे अमलमें लाना अगर बिलकुल असम्भव नहीं तो कठिन अवश्य हो जायेगा। लेकिन एक ऐसे राज्य में, जिसके संविधानके अनुसार सरकारके लिए एक निर्धारित ढंगसे शासितोंकी स्वीकृति प्राप्त करना जरूरी हो, यह बात शिकायतका कोई आधार नहीं हो सकती।