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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

यहाँ भेंट हुई है। ब्रिटिश गियानासे यहाँके महान्यायवादी[१] तथा वहाँ रहनेवाले कुछ-एक पुराने भारतीय सज्जन शिष्टमण्डलमें आये हैं। फीजीसे वहाँके बिशप और एक दूसरे अंग्रेज सज्जन आये हैं। ब्रिटिश गियानाकी माँग यह है कि हमारे किसान वर्गके लोग स्वतन्त्र रूपसे वहाँ जायें और खेती करें। वहाँ उनमें से किसीको भी मजदूरी करनेकी जरूरत नहीं है। ब्रिटिश गियानामें भारतीयों और गोरोंके बीच समानता है। यह वहाँके गोरोंका गुण नहीं बल्कि वहाँकी स्थितिका परिणाम है। गोरे अधिकांशतः अधिकारीवर्गके हैं और खेती आदि वे कर नहीं सकते। वहाँके गोरोंने हमारे प्रति द्वेष-भावको छोड़ दिया है, ऐसा माननेका कोई कारण नहीं है। फिर भी इतनी बात तो सच है कि ब्रिटिश गियानामें कमसे-कम इस समय अन्य देशोंकी तरह [जाति] भेद नहीं है, और यदि भारतीय लोग वहाँ जाकर बस जायें तो उन्हें पूर्व आफ्रिकामें जैसी तकलीफ उठानी पड़ रही है, वैसी न उठानी पड़ेगी।

फीजीमें भिन्न स्थिति है। फोजीका शिष्टमण्डल स्वतन्त्र [धंधा करनेवाले] भारतीय नहीं, वरन् स्वतन्त्र रूपसे मजदूरी करनेवाले भारतीयोंको माँगता है। वे गिरमिटमें बँधकर नहीं बल्कि स्वतन्त्र रूपसे मजदूरी करने के लिए जायें जिस तरह कि वे सिंगापुर आदि स्थानोंमें जाते हैं।

इन दोनों माँगोंके सम्बन्धमें मेरी राय माँगी गई है। मैंने अभी सार्वजनिक रूपसे अपना कोई मत व्यक्त नहीं किया है। किन्तु मैंने ब्रिटिश गियानाके महान्यायवादीके सम्मुख जो-कुछ विचार[२] प्रकट किये थे, उनपर वे मेरे हस्ताक्षर ले गये हैं। मुझे लगता है कि अभी हम "कॉलोनिस्ट"[३] भेजने को तैयार नहीं; लोगोंमें [अभी] इतनी स्वतन्त्रता, इतनी आत्मनिर्भरता नहीं आई है। इसलिए स्वतन्त्र रूपसे मजदूरोंका जाना मुझे मुश्किल दिखाई देता है। किसान स्वतन्त्र रूपसे वहाँ जायें और रहें, यह भी मुझे अभी सम्भव नहीं दिखाई देता।

हममें उतनी चातुरी नहीं है, बाहर जाने का शौक नहीं है और बाहर जानकी उतनी जरूरत भी नहीं है। यदि साहसिक लेकिन अज्ञानी वर्ग जाये तो उसके पीछे विद्वान् पारमार्थिक वर्ग भी जाना चाहिए। वैसे व्यक्ति जायें और लोकसेवा करें तो बहुत अच्छा काम हो सकता है, ऐसी मेरी मान्यता है। किन्तु वैसा वर्ग हिन्दुस्तानमें ही थोड़ा है, उसमें से बाहर जानेवाले व्यक्ति कहाँसे मिल सकते हैं? इसलिए यद्यपि में किसान वर्गके लोगोंको श्रमिकके रूपमें कानूनके जरिये बाहर जानेसे रोकना नहीं चाहूँगा, तथापि ऐसे व्यक्तियोंको बाहर जाने के लिए प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्षरूपसे प्रोत्साहन भी नहीं दूँगा। फिलहाल तो मैं पाठकोंके सम्मुख अपनी नम्र राय ही पेश कर सकता हूँ।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, ८-२-१९२०
  1. १. डाक्टर जोसेफ न्यूनन।
  2. २. गांधीजी डाक्टर न्यूननसे १ फरवरी, १९२० को मिले थे।
  3. ३. गुजरातीमें अंग्रेजी शब्द ही दिया गया है जिसका अर्थ है 'नई बस्ती बसानेवाले'।