अगर राष्ट्रको इन मृतकोंकी स्मृतिको स्थायित्व प्रदान करनेका कोई निर्दोष मार्ग नहीं मिलता तो वह उस कृत्यको कभी माफ नहीं करेगा। अतएव घृणाको रोकनेका सबसे अच्छा तरीका है राष्ट्रको यह सिखाना कि वह मृतकोंकी स्मृतिको, जो एक पवित्र थाती है, उस "नृशंसता" से पृथक करके देखे जिसे यदि भुलाया न जा सकता हो तो भी माफ तो कर ही देना चाहिये।
पूछा गया है कि स्मारकका स्वरूप क्या होगा। इसका निश्चय तो वह समिति करेगी जो इस कामके लिए विशेष रूप से नियुक्त की गई है और जिसके सदस्य हैं माननीय पंडित मदनमोहन मालवीय, माननीय पंडित मोतीलाल नेहरू, स्वामी श्रद्धानन्द और मैं। और मैं इतना अवश्य जानता हूँ कि अन्ततः स्मारकका स्वरूप चाहे जो हो, किन्तु निश्चय ही उसमें किसीको कोई चोट पहुँचाने वाली बात नहीं होगी।
इसलिए मैं आशा करता हूँ कि अब जो दो दिन चन्दा करनेका काम जारी रहेगा उसके दौरान इस राष्ट्रीय स्मारकमें अभीतक अपना योगदान न दे पानेवाले सभी लोग योग देंगे। और इसका स्वरूप सचमुच तभी राष्ट्रीय होगा और यह बाग एक पवित्र तीर्थका रूप ले सकेगा जब इसमें बूढ़े-जवान, स्त्री-पुरुष और गरीब-अमीर सभी अपना-अपना हिस्सा देंगे।
[अंग्रेजीसे]
बॉम्बे क्रॉनिकल, १२-४-१९२०
१०९. तार : वाइसरायके निजी सचिवको
[बम्बई]
१३ अप्रैल, १९२०
सम्बन्ध में इंग्लैंड जाने के लिए मुझपर दबाव डाला गया था रहा है। यद्यपि में नहीं समझता कि मैं महामहिमके मन्त्रियों द्वारा निर्धारित नीतिको इस अवस्था में किसी भी तरह से प्रभावित कर सकता हूँ तथापि साम्राज्यके एक शुभचिंतक की हैसियत से मंत्रियों तथा ब्रिटिश जनताको इस बात से अवगत करा देना उसके प्रति मैं अपना अपना कर्तव्य समझता हूँ कि मुसलमानों की उचित भावनाओं के विरूद्ध निर्णय किये जानेके कैसे ऐसे विपरीत निर्णयका परिणाम निश्चित ही यह होगा कि लोग सरकार के साथ सहयोग करना बिल्कुल बंद कर देंगे। ऐसे किसी कदमों को अगर मैं टाल सका तो खुशी-खुशी वैसा करूंगा, लेकिन जो लोग धर्म तथा स्वाभिमान को हर चीज से ऊपर मानते हैं उनके