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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

खोलें जो नवयुवकोंको अपनी जीवन-संगिनियाँ ढूँढने के उद्देश्यसे थोड़े समयके लिए भारत आनेके लिए प्रोत्साहित करें। सच तो यह है कि इस भारी कठिनाईकी चर्चा करते हुए मैं यह कहनका लोभ संवरण नहीं कर पा रहा हूँ कि अगर दोनों शिष्टमण्डल अपनी शक्ति अपने आसपासके बातावरणको स्वच्छ करने में ही लगायें तो उनके उद्देश्यके प्रति लोगोंका रुख अधिक अच्छा और सहायक होगा।

इसके अतिरिक्त स्वतन्त्र प्रवासकी कोई भी योजना तबतक सफल नहीं हो सकती जबतक हमारे और अंग्रेजोंके सम्बन्धमें सर्वत्र काफी सुधार नहीं हो जाता। दक्षिण आफ्रिकाके अंग्रेज भारत, फीजी या ब्रिटिश गियानाके अंग्रेजोंसे किसी भी तरह बुरे नहीं है। दक्षिण आफ्रिकामें अपने स्वार्थोंके सम्बन्धमें उनकी जो अदूरदर्शितापूर्ण कल्पना है उसके कारण वे भारतीयोंको वहाँसे निकाल बाहर करने की मांग कर रहे हैं। वहाँ उनकी अन्तरात्मा और स्वार्थके बीच द्वंद्व चल रहा है। ब्रिटिश गियानामें जो उनकी अन्तरात्माकी आवाज कहती है, वही उनके स्वार्थकी भी मांग है। इसलिए वे चाहते हैं कि भारतीय वहाँ बसने के लिए जायें। किन्तु जैसे दक्षिण आफ्रिकाके अंग्रेज भारतीयोंको अपनी बराबरीका नहीं मानते वैसे ही वहाँके अंग्रेज भी नहीं मानते। लेकिन जो बात इससे भी बुरी है वह यह कि कोई साधारण भारतीय स्वयं भी यह नहीं समझता कि वह अंग्रेजोंकी बराबरीका है। इसलिए दोनोंमें परस्पर अविश्वास है। यदि एक दूसरेसे घृणा करता है तो दूसरा पहलेसे भय खाता है। उनके सम्बन्ध जबतक सामान्य और स्वाभाविक नहीं हो जाते तबतक इन उपनिवेशोंके लिए स्वतन्त्र प्रवासको प्रोत्साहन देना या उसका समर्थन करना भी उचित नहीं है।

मैं समझता हूँ कि इन शिष्टमण्डलोंको जैसे प्रवासियोंकी आवश्यकता है वैसे प्रवासी प्राप्त करनेके लिए वे एक प्रकारकी एजेन्सी या ब्यूरो खोलना चाहते हैं। स्वतन्त्र मजदूरोंके रूपमें भारतीयोंके फोजी जानेकी कल्पना करके मेरा मन विचलित हो उठता है। आज उनमें सोचने-समझनेकी जितनी क्षमता है, उसको देखते वे फीजी जानेके बाद स्वतन्त्र और गिरमिटिया मजदूरोंका भेद नहीं समझ पायेंगे। ब्रिटिश गियानामें खेतिहर लोगोंकी समझमें यही नहीं आयेगा कि वे मेहनत और हुनरका क्या उपयोग करें और फलत: खेतोंमें मजदूरी करते फिरेंगे। इस स्वतन्त्र एजेन्सीके साथ-साथ हमारी ओरसे भी एक ऐसी ही सलाहकार एजेन्सी होनी चाहिए जो लोगोंको अपना रास्ता चुनने में मदद कर सके। मैंने डा० न्यूननको सुझाव दिया है कि प्रयोगके तौरपर एक जहाज मजदूर भेजे जायें और यह भी कि उनके साथ श्री सी० एफ० एन्ड्रयूजको या ब्रिटिश गियानाके मजदूरोंकी स्थितिका ज्ञान रखनेवाले किसी अन्य प्रमुख भारतीयकोभी भेजा जाये, जो अध्ययनके बाद उसपर अपनी रिपोर्ट दे। फिलहाल तो ज्यादासे-ज्यादा इतना ही करना सम्भव है। और मैं आशा करता हूँ कि न तो प्रस्तावित गैर-सरकारी समिति और न जनता ही इससे कुछ अधिकके लिए तैयार होगी।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, ११-२-१९२०