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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 17.pdf/४६९

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पत्र : सैयद फजलुर्रहमानको



तो घोरतम सूने अन्तर और कृष्णतम मार्ग
दिव्य-दिवसके द्वारपर पहुँचा देंगे।
और हम जो एक-दूसरेसे बहुत दूर-दूरके
किनारोंपर जाल फेंक रहे हैं
अपनी खतरनाक यात्रा समाप्त करके
आखिरकार सबके-सब पितृगृहमें आ इकट्ठे होंगे।'

सस्नेह,

तुम्हारा,
बापू

[अंग्रेजीसे]
माई डियर चाइल्ड

१७३. पत्र : सैयद फजलुर्रहमानको

आश्रम
११ मई, १९२०


प्रिय सैयद फजलुर्रहमान,

ठीकसे देखा जाये तो टर्कीके खिलाफ अन्याय करके भारतीयोंकी भावनाको चोट सरकारने पहुँचाई है। इसलिए ब्रिटिश मालका बहिष्कार करने का मतलब यह तो नहीं होगा कि मैंने सरकारके अन्याय में सहयोग देने से हाथ खींच लिया। सच तो यह है कि मैं अंग्रेजों की भी सहानुभूति प्राप्त करके ब्रिटिश सरकारको न्याय करनेपर मजबूर करना चाहता हूँ। में यह नहीं कहता कि अगर सफलतापूर्वक बहिष्कार किया जाये तो उससे हमारा लक्ष्य सिद्ध नहीं होगा। लेकिन ऐसा हम कर्त्तव्य-भाव से प्रेरित होकर नहीं करेंगे, उसके पीछे तो दण्ड देनेकी ही भावना होगी। हमें खुद किसी तरहके अन्यायमें भागीदार नहीं बन जाना है। आज मेरी असहयोग योजनाके अनुसार लोकोपयोगी सरकारी संस्थाओंमें काम कर रहे लोगोंको अपनी नौकरियां छोड़ने की जरूरत नहीं, लेकिन अगर कोई सरकार पूर्णतया भ्रष्ट ही हो जाये तो उसके साथ पूरा असहयोग करके उसका चलना असम्भव कर देने में भी मुझे कोई संकोच नहीं होगा। अगर किसी भ्रष्ट संस्था से कोई लाभदायक सेवा भी प्राप्त होती है तो में वह सेवा स्वीकार नहीं करूँगा। और अगर कोई सरकार सर्वथा भ्रष्टाचारी हो और इसलिए प्रजाके असहयोगके कारण उसका चलना असम्भव हो जाये तो उसका स्थान तत्काल एक नई संस्था ले लेती है; और जिस ढंगकी लोकोपयोगी सेवाओंका उल्लेख आपने किया है, उस ढंगकी सेवाएँ प्रदान करती है। लेकिन अभीतक तो ब्रिटिश सरकारके सम्बन्धमें मेरी राय इतनी बुरी नहीं है। यह कभी-कभी कुछ समय के लिए अपने रास्ते से भटक अवश्य जाती है,