बेलगाम स्वेच्छाचारितामें विश्वास नहीं करता। अधिकांश विवाहोंके पीछे शारीरिक आकर्षणकी ही प्रेरणा रहती है। मैं इस आकर्षण के क्षेत्रको संकुचित कर देना चाहूँगा। तो इस प्रकार तुम देख सकते हो कि अगर कोई ब्राह्मण युवक-पत्नी प्राप्त करनेके लिए अपनी जातिसे बाहर जाये तो मैं इसे पसन्द नहीं करूंगा। यहाँ अस्पृश्यताका कोई सवाल नहीं उठता। मेरे विचारसे जाति प्रथाका यदि ठीकसे नियमन किया जाये तो वह एक उपयोगी संस्था है। अस्पृश्यता ईश्वरके प्रति और मानवताके प्रति एक अपराध है। जाति-प्रथाको में शुद्ध बनाऊँगा, किन्तु अस्पृश्यताको में समाप्त ही कर दूंगा। अगर मणिलाल किसी अछूत लड़कीके प्रेममें पड़ जाये तो में उसके इस चुनावके सम्बन्धमें कोई आपत्ति नहीं करूंगा, लेकिन यह अवश्य मानूंगा कि वह मेरी शिक्षाको अपने जीवन में उतार नहीं सका। इस मामले में उसे अपनी जातिकी सीमाके भीतर ही रहनको कहूँगा. सो कुछ इसलिए नहीं कि दूसरी जातियोंके प्रति अपने मनमें घृणा या अरुचिके भाववश वह ऐसा करे बल्कि इसलिए कि मैं चाहूँगा, वह संयम बरते। यही बात जाति-प्रथाके सम्बन्धमें भी लागू होती है। आश्रम में हम किसी प्रकारका जातीय बन्धन नहीं मानते, क्योंकि वहाँ हम एक नया प्रयोग कर रहे हैं, लेकिन में यह पसन्द नहीं करूंगा कि ब्राह्मण अपनी जातिकी सीमासे बाहर जाकर जहाँ-तहाँ, जिस-तिसके साथ खाता फिरे। इसी प्रकार दूसरी जातिके लोगोंके साथ न खानेकी बात में कोई .' की भावनासे नहीं, बल्कि अनुशासनकी भावनासे ही प्रेरित होकर कहता हूँ। आप जाति-प्रथाको, उसमें जो बुराइयाँ आ गई हैं, उनसे मुक्त कर दीजिए और फिर देखिए कि किस तरह वह हिन्दुत्वकी रक्षाका सुदृढ़ दुर्ग बन गई है, एक ऐसी संस्था बन गई है जिसकी जड़ें मानव-प्रकृतिकी गहराई में जमी हुई हैं। अब खिलाफतके सवालको लें। में आर्मीनियाके बारेमें इसलिए चुप हूँ कि उसकी स्थितिकी मुझे कोई जानकारी नहीं है और मैं नहीं चाहता कि [टर्कीके ] सुलतान या कोई अन्य ताकत उसके स्वतन्त्र अस्तित्वको समाप्त कर दे। वह जैसे अन्य किसी ताकतके अधीन रहकर स्वशासनका उपभोग कर सकता है वैसे ही तुर्कोंके अधीन रहकर भी कर सकता है। मैंने बराबर कहा है कि सुलतानसे इस बातकी पूरी-पूरी गारंटी ले ली जाये कि आर्मीनियाके आन्तरिक प्रशासन में किसी प्रकारका हस्तक्षेप नहीं किया जायेगा। इसी प्रकारकी गारंटी अरबके सम्बन्धमें भी ले ली जाये । शान्ति-संघि- से उत्पन्न स्थिति बिलकुल असह्य है। सुलतानके लिए अरबवाले बहुत जबरदस्त पड़ते थे, इसलिए सुलतानके अधीन उन्हें कुछ स्वतन्त्रता प्राप्त थी। लेकिन अब तो वे उसे भी खो बैठे हैं। और अब अगर हेजाजके राजा तथा अमीर फैज़लका बस चला तो कुछ ही दिनोंमें अरब और मेसोपोटामियाको विदेशी लोग बिलकुल चूस लेंगे क्योंकि ये दोनों शासक ब्रिटिश अधिकारियोंके हाथोंके कठपुतले मात्र होंगे,
१. यहाँ कुछ शब्द पढ़े नहीं जा सके।
२. सन् १९२० में आर्मीनिया टर्की और रूसको संयुक्त सेनाओंके कब्जे में था।
३. टर्कीके साथ शान्ति-संधिका कागज पेरिसमें तुर्क प्रतिनिधियोंको ११ मई, १९२० को दिया गया; गांधीजीने १८ मई, १९२० को अखबारोंको दिये गये वक्तव्य में इसके संशोधनकी माँग की।