तरीकोंमें ज्यादा शुद्धता लायें। अगर हम चाहें तो ऐसा कर सकते हैं कि अन्यायकर्त्ताको अपनी इच्छाके आगे झुकानेके लिए, अधीर होकर पशु-बलका प्रयोग न करें, जैसा कि आजकल सिन-फैन दलके लोग कर रहे हैं, और न हम अपने पड़ोसियोंको अपने तरीके अपनानेके लिए उनपर दबाव डालें जैसा कि पिछले वर्ष हड़तालके सिलसिले में हममें से कुछ लोगोंने किया था। कितनी प्रगति हुई, इसे इस प्रकार मापा जायेगा कि कष्टसहन करनेवालोंने कितना कष्टसहन किया। कष्टसहन जितना ही शुद्ध होगा उतनी ही अधिक हमारी प्रगति होगी। इसी कारण ईसामसीहका बलिदान दुःखसे भरे संसारको कष्ट-मुक्त करनेके लिए पर्याप्त सिद्ध हुआ। अपने सिद्धान्तोंको लेकर आगे बढ़ते समय उन्होंने इस बातका विचार नहीं किया कि उनके पड़ोसियोंको स्वेच्छासे या अन्यथा कितनी यातना सहनी पड़ रही है। इसी तरह हरिश्चन्द्रने जो कष्ट सहे वे ही इस जगत्में पुनः सत्यका अटल साम्राज्य स्थापित करनेके लिए पर्याप्त सिद्ध हुए। उन्हें अवश्य ही यह विदित रहा होगा कि उनके सिंहासन त्यागसे उनकी प्रजाको अनचाहे ही कष्ट सहन करना पड़ेगा। पर उसकी उन्होंने परवाह नहीं की, क्योंकि यदि वे उस विचारमें पड़ जाते तो सत्यका पालन नहीं कर पाते।
मैं पहले ही कह चुका हूँ कि मुझे जलियाँवाला बाग हत्याकाण्डका उतना दुःख नहीं है जितना कि हमने जो अंग्रेजोंकी हत्याकी और धन-सम्पत्तिको क्षति पहुँचाई, उसका है।' अमृतसर-काण्डकी भयंकरताने लोगोंका ध्यान लाहौरकी भयंकरतासे हटाकर अपनी ओर खींच लिया, हालांकि लाहौरमें जो-कुछ हो रहा था वह अमृतसरसे भी अधिक भयंकर था, क्योंकि वहाँ लोगोंको धीरे-धीरे सर्वथा पुंसत्वहीन बना देनेका प्रयत्न किया जा रहा था। पर यदि हम अपना उत्थान चाहते हैं तो हमें इस तरहकी यातनाएँ तबतक भोगते रहना पड़ेगा, जबतक हम स्वेच्छापूर्वक कष्टसहन करना और उसीमें सुखका अनुभव करना नहीं सीख जायेंगे। मेरा पक्का विश्वास है कि लाहौवालों पर जो अत्याचार किया गया, उसके वे पात्र नहीं थे। न तो उन्होंने किसी अंग्रेजको कोई चोट पहुँचाई थी और न किसीकी सम्पत्तिको बरबाद किया था। वे तो सिर्फ दासताके कष्टकर जुएको अपने कंधोंसे उतार फेंकनेका प्रयत्न कर रहे थे, लेकिन एक स्वेच्छाचारी शासक उनके इस उत्साहको तोड़ देनेके लिए संकल्प किये बैठा था। और यदि मुझसे यह कहा जाये कि इन सबका कारण मेरी सत्याग्रहकी शिक्षा ही थी तो मेरा उत्तर है कि जबतक मुझमें साँस बाकी है, में इसका और जोरशोरसे प्रचार करूँगा और जनतासे कहूँगा कि अगली बार ऑडायरी मदान्धताके जवाबमें आप अपनी दुकानें मालकी जबरन् बिक्रीके डरसे न खोलें बल्कि अत्याचारीको मनमानी कर लेने दें और अपना सारा माल बिक जाने दें -- केवल अपनी आत्माको बचाये रखें, उसे न बेचें। प्राचीन समयके ऋषि लोग अपने शरीरको यातनाओंसे तपा डालते थे, ताकि उनकी आत्मा स्वतन्त्र हो सके, उनकी तपाई हुई कायामें कष्ट सहनकी उतनी क्षमता आ जाये कि उनसे अपनी बात मनवाने के लिए अत्याचारी लोग जो भी अत्या-
१ और २. देखिए “पंजाबके उपद्रवोंके सम्बन्धमें कांग्रेसकी रिपोर्ट ", २५-३-१९२०।