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२४. पत्र: एस्थर फैरिंगको

बृहस्पतिवार [१२ फरवरी,][१]१९२०

रानी बिटिया,

सुबह मुँह धोते समय मुझे तुम्हारा तथा महादेवका ही ध्यान सबसे अधिक आया। मैंने तुम्हें अहमदाबादमें रोक रखा है।[२] परन्तु क्या मैंने यह ठीक किया है, यदि तुम्हारा स्वास्थ्य और गिर गया तो मैं तो कहींका नहीं रह जाऊँगा। इसलिए मैं चाहता हूँ कि तुम मेरा इन्तजार सिर्फ तभी करो जब तुम्हारा स्वास्थ्य थोड़ा-बहुत भी ठीक रहे। अन्यथा तुम्हारे मद्राससे लौटनेपर ही हम मिलेंगे। महज़ इसलिए ठहरना अनिवार्य न समझो कि मैंने वैसी इच्छा व्यक्त की है। शुद्धतम स्नेह व्यक्त करना तलवारकी धारपर चलने के समान है। मेरा मुझमें कुछ नहीं; जो कुछ है सो तोर,[३] ऐसा कहना तो सरल है, किन्तु इसपर आचरण करना बहुत कठिन है। हम कभी नहीं कह सकते, यहाँतक कि जब हमें लगता है हम पूर्ण रूपसे प्रेममय है तब भी नहीं कह सकते कि इस समय हममें स्वार्थ नहीं है। इसपर मैं जितना ज्यादा सोचता हूँ उतना ही मुझे अपनी बहुधा कही हुई बातकी सत्यता भासित होती है। प्रेम और सत्य एक ही सिक्केके दो पहलू हैं। दोनों ही का आचरण अत्यन्त कठिन है और केवल ये ही दो चीजें हैं, जिनके लिए जीनेमें जीवनकी सार्थकता है। यदि कोई व्यक्ति भगवान्के बनाये सभी जीवोंसे प्रेम नहीं करता तो वह सत्यपरायण नहीं हो सकता; अतएव सत्य और प्रेम त्यागके पूर्ण स्वरूप हैं। इसलिए मैं ईश्वरसे प्रार्थना करूँगा कि मैं और तुम, दोनों इस सत्यको अच्छी तरह समझ सकें।

तुम्हारा,

बापू

[अंग्रेजीसे]
माई डियर चाइल्ड
  1. और
  2. देखिए "पत्र: एस्थर फेरिंगको",१०-२-१९२०।
  3. "नन ऑफ सेल्फ, पेंड ऑल ऑफ दी"।