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३१. पत्र: एस्थर फैरिंगको

बनारस जाते हुए ट्रेनमें

रविवार [१५ फरवरी, १९२०][१]

रानी बिटिया,

में बनारस जा रहा हूँ[२] और हम शीघ्र ही मिलेंगे। कितना अच्छा होता कि तुम मेरे साथ होती और देवदासकी तरह मेरी सेवा करती होतीं। मैं जानता हूँ कि यह काम तुम्हें बड़ा सुखकर लगता और मुझे भी अच्छा लगता। वैसे तो पिताके स्थानकी पूर्ति कोई नहीं कर सकता परन्तु इस देशमें, जिसे तुमने अपना बना लिया है, मैं तुम्हारे लिए अपनी सामर्थ्य-भर इस स्थानकी पूर्ति करना चाहूँगा। स्वास्थ्य-लाभके लिए तुम्हें डेनमार्क जाना पड़ रहा है, इस बातको सोचकर मैं लज्जित हो रहा हूँ। मुझे इससे अधिक खुशी किसी और बातसे न होती कि मैं तुम्हें पूर्ण स्वस्थ और एक अधिक पूर्ण ईसाई मतानुगामिनी तथा श्रेष्टतर पुत्रीके रूपमें डेनमार्क भेजता। तुममें इसी जीव- नमें सम्पूर्ण रूपसे विकसित होनेकी समस्त सम्भावनाएँ विद्यमान हैं। भगवान् तुम्हारी सभी प्रिय इच्छाएँ पूरी करे और तुम्हें मानव-समाजकी महान् सेवाका एक निमित्त बनाये। भारतके लिए तुम्हारा प्रेम मानव-समाजके प्रति तुम्हारे प्रेमको अभिव्यक्तिके रूपमें ही स्वीकार्य होगा। 'मेरा मुझमें कुछ नहीं, जो कुछ है सो तोर'[३]यह एकउच्चकोटिकी वन्दना है, अपने ढंगकी सर्व-श्रेष्ठ।

ईश्वर करे यह तुम्हारे लिए तथा मेरे लिए भी सच्ची उतरे।

समस्त स्नेह सहित,

तुम्हारा,

बापू

[पुनश्चः]

'ए०' को तुम अपने दिलकी सारी बात बता देना।[४]

[अंग्रेजीसे]
माई डियर चाइल्ड
  1. एस्थर फैरिंग भारतसे डेनमार्कके लिए १९२० में रवाना हुई और उस वर्ष १५ फरवरीको गांधीजी लाहौरसे बनारसके लिए रवाना हुए थे।
  2. एक सभाके लिए, जहाँ पंजाब कांग्रेस उप-समितिकी रिपोर्ट के मसविदेको अन्तिम रूप दिया जानेवाला था।
  3. नन ऑफ सेल्फ ऐंड ऑल ऑफ दी।
  4. नेशनल आर्काइब्ज़में जो फोटो-नकल उपलब्ध है उसमें यह वाक्य नहीं मिलता ।