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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मेरे आचरणको काफी स्पष्ट कर देता है। अतएव में उक्त पत्रको एक प्रति संलग्न कर रहा हूँ। मुझे खेद है कि मुख्य न्यायाधीश महोदयकी दी हुई सलाहको[१] मानना मैंने सम्भव नहीं पाया है।

मुझे विश्वास है कि सम्मानित न्यायालय मुझसे ऐसी क्षमा याचना नहीं चाहेगा जो हार्दिक न हो और न एक ऐसे कार्यके लिए खेद व्यक्त करने को कहेगा जिसे मैंने एक पत्रकारका अधिकार तथा कर्तव्य माना है। अतएव यह सम्मानित अदालत कानूनकी शान बनाये रखने के लिए जो भी दण्ड मुझे देगी उसे मैं सहर्ष और सादर स्वीकार करूँगा।

प्रकाशक श्री महादेव देसाईको दिये गये नोटिसके बारेमें मैं कहना चाहता हूँ कि सम्बन्धित पत्र और टिप्पणी उन्होंने मेरी प्रार्थना और परामर्शपर ही छापी थी।[२] इसके अलावा मैं इसलिए भी उक्त सलाह माननेमें असमर्थ रहा हूँ कि श्री कैनेडीका पत्र छापकर या उसमें लिखी बातोंपर टिप्पणी प्रकाशित करके मैंने कोई कानूनी या नैतिक अपराध किया है, ऐसा मैं नहीं मानता।

[महादेव देसाईका वक्तव्य]

मेरे विरुद्ध जारी किये गये कैफियत-तलबी आदेशके बारेमें निवेदन है कि मैंने 'यंग इंडिया' के सम्पादक द्वारा पेश किया गया बयान पढ़ लिया है और उसमें उन्होंने अपने कार्यका औचित्य सिद्ध करने के लिए जो तर्क प्रस्तुत किया है, उससे मैं सहमत हूँ। अतएव सम्मानित न्यायालय जो भी दण्ड मुझे देगा, उसे मैं सादर और सहर्ष स्वीकार करूँगा।

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ७१२८) से।

४२. पत्र: मथुरादास त्रिकमजीको[३]

फाल्गुन सुदी, ८ [२७ फरवरी, १९२०][४]

तुम्हारा पत्र कल मिला। मैं वहाँ सोमवारको[५] पहुँचनेकी आशा करता हूँ। इसलिए मैं उत्तर स्वयं नहीं लिख रहा हूँ; एक छोटा-सा उत्तर बोलकर लिखवा रहा हूँ।

  1. उनके सुझाये हुए तरीकेसे क्षमा माँग लेनेकी सलाह।
  2. यंग इंडिया, १०-३-१९२० में जो वक्तव्य छपा है, वह यहीं समाप्त हो जाता है।
  3. मथुरादास विकमजी (१८९४-१९५१); गांधीजीकी सौतेली बहनके पौत्र; समाजसेवी, लेखक और गांधीजीके अनुपापी; बम्बई कांग्रेस कमेटीके मन्त्री (१९२२-२३); बम्बई नगर-निगमके सदस्य (१९२३-२५)।
  4. मथुरादास द्वारा लिखित आत्म-निरीक्षणके पृष्ठ ५८ की पाद-टिप्पणी २ से पता चलता है कि सभा, जिसकी कि गांधीजीने पत्रमें चर्चा की है, ३ मार्च, १९२० को हुई थी।
  5. गांधीजी बुधवार ३ मार्च, १९२० को बम्बई पहुँचे थे।