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भाषण: छिंदवाड़ा में

बत्ता, जिस भावनासे प्रेरित होकर लोग काम कर रहे हैं, वह सर्वथा शुद्ध नहीं है। अगर वह भावना भी उद्देश्य और साधनकी तरह ही विशुद्ध होती, तो यह संघर्ष इतना लम्बा खिंचता ही नहीं।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, ५-१-१९२१
 

१०५. भाषण: छिन्दवाड़ामें

६ जनवरी, १९२१

भाइयो और बहनो,

पिछले तीन वर्षोंसे मैं आपके शहरमें आनेकी कोशिश कर रहा था। हिन्दुस्तान आनेके बाद जिनसे मेरा परिचय हुआ ऐसे मुसलमान भाइयोंमें सबसे पहले अली भाई थे। जबसे वे नजरबन्द[१] किये गये हैं तभीसे मैं उनसे मिलनेकी अनुमति लेनेकी कोशिश कर रहा था, लेकिन वह मुझे नहीं मिली।

अलो भाइयोंके मनमें छिंदवाड़ाके प्रति बहुत अनुराग है। पहले हमारा करार यह था कि मैं बम्बई होता हुआ कुछ समय आराम करने के लिए अहमदाबाद जाऊँ; लेकिन वे मुझे छिंदवाड़ा ले आये हैं जिससे उन्हें इतना अधिक प्रेम है, जिसकी उन्होंने सेवा की है और जिसने बदले में उनकी भी बहुत सेवा की है तथा उससे उन्हें बड़ी-बड़ी आशाएँ हैं।

मध्यप्रान्त में कांग्रेसका अधिवेशन हुआ है[२] इससे उसके गौरवमें निस्सन्देह वृद्धि हुई है; लेकिन कांग्रेसते वहाँ जो प्रस्ताव पास किया उससे उसकी प्रतिष्ठा में चार चाँद लग गये हैं। हिन्दुस्तान और मध्यप्रान्तका यह सौभाग्य है कि कलकत्ता में[३] जो कुछ हुआ उससे हम नागपुर में एक कदम भी पीछे नहीं हटे बल्कि आगे ही बढ़े हैं। यदि हम खिलाफतके अपमानका परिमार्जन कराना चाहते हों, पंजाबके अन्यायका निराकरण कराना चाहते हों तथा स्वराज्यकी स्थापना करना चाहते हो तो हमारा कर्तव्य क्या है, यह बात हमें नागपुर अधिवेशनमें बताई गई है। हम सरकारी उपाधियोंसे विभूषित लोगोंसे जो कुछ कहना चाहते थे सो सब कह चुके हैं। उपवियोंको बरकरार रखने अथवा उनका त्याग करनेकी जिम्मेदारी कांग्रेसने उन्हींपर डाली है, इसीसे इस बारके स्वीकृत प्रस्ताव में[४] उनका उल्लेखतक नहीं किया गया है। अब देशका कोई बच्चा भी ऐसा न होगा जिसे इन उपाधिधारी लोगोंसे किसी प्रकारका भय अथवा उनकी उपाधियोंके प्रति मनमें आदर-भाव हो।

  1. छिंदवाड़ा (मध्यप्रान्त) में; १९१५ के भारत रक्षा अधिनियम के अन्तर्गत।
  2. दिसम्बर १९२० में नागपुर में।
  3. सितम्बर १९२० के कांग्रेसके विशेष अधिवेशन में।
  4. सम्भवतथा गांधीजीका संकेत असहयोग सम्बन्धी प्रस्तावकी ओर है।