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कांग्रेसी अपराधी है; क्योंकि यदि वह पूर्ण स्वातन्त्र्यके बिना अपना जन्मसिद्ध अधिकार प्राप्त नहीं कर सकता, तो वह गणराज्यकी बात सोचने और उसे प्राप्त करनेका प्रयत्न करने में तनिक भी दुविधा अनुभव नहीं करेगा। सच तो यह है कि, मद्यनिषेध आन्दो- लन मध्यप्रान्त तथा अन्य प्रान्तोंके लोगोंपर गहरा असर कर गया है, और सरकार यह बर्दाश्त नहीं कर सकती। भगवानदीनजी, जिन्हें स्थानीय जनता बड़े प्रेमसे महात्मा कहती है, नागपुरकी एक वर्धमान संस्था, असहयोग आश्रमके सम्माननीय अधीक्षक हैं। वे एक प्रभावशाली वक्ता और कार्यकर्ता हैं। आबकारीसे मिलनेवाले राजस्वके मामले में भी सरकार उनको चुप करना चाहती है। मध्यप्रान्तमें और दूसरी जगहोंपर जो मुक- दमे चलाये जा रहे हैं, उनसे मैंने यही निष्कर्ष निकाला है। बेशक उन लोगोंपर हिंसाके लिए मुकदमे चलाये जाने चाहिए जो जनताको मद्य-विक्रेताओं तथा शराबकी दुकानों- पर जानेवालोंके प्रति हिंसाके लिए भड़काते हैं अथवा जो खुद वहाँ मारपीट करते हैं । किन्तु इतनी देर बाद लोगोंपर राजद्रोहकी धाराओंके अन्तर्गत मुकदमे क्यों चलाये जा रहे हैं? इसका उत्तर सीधा-सादा है। शराबके सिलसिलेमें जिम्मेदार व्यक्तियों द्वारा हिंसाका कोई प्रयोग नहीं हुआ। गैर-जिम्मेदाराना किस्मकी हिंसा एक क्षणमें रोकी जा सकती है। लेकिन सरकार यह नहीं चाहती। वह शराब और अफीमसे होनेवाली आमदनीके खतम हो जानेसे डरती है और वैध अथवा अवैध किसी भी उपायसे उसे रोकनेपर तुली हुई है।

सरकारको निरुपाय कर दो

यदि मेरा अन्दाज सही है, तो उपाय सरल है। हमें सरकारको मुकदमे चलानेके लिए इतना बहाना भी नहीं देना चाहिए, जिसे सरकार बढ़ा-चढ़ा कर दिखा सके । यदि वर्तमान शासन-प्रणालीके प्रति अश्रद्धा रखना राजद्रोह है, तो वह सद्गुण है, कर्तव्य है। किन्तु हमें उसका प्रचार करनेकी आवश्यकता नहीं। खिताबधारियोंको भी उस प्रणालीसे प्रेम नहीं है। जैसा कि उनमें से अनेकने स्वीकार किया है, वे अपने खिताब इसलिए धारण किये हुए हैं कि उनमें अपनी सम्पत्ति खोनेकी जोखिम उठाने- की हिम्मत नहीं है। मैं एकाधिक लोगोंको जानता हूँ, जिन्हें धमकी दी गई थी कि यदि वे सरकारके अनुग्रहोंका तिरस्कार करेंगे तो उनकी जागीर जब्त कर ली जायेगी । मैं ऐसे अनेक अन्य लोगोंको जानता हूँ, जो अपने खिताबोंका त्याग इसलिए नहीं करते कि उन्हें डर है कि उनके व्यापारमें उन्हें बैंकोंसे आर्थिक सहायता मिलनी बन्द हो जायेगी। इस हदतक है सरकारका डर! किन्तु ये सब लोग उस प्रणालीके नाशका स्वागत करेंगे, जिसके अधीन यदि उन्हें कुछ लाख रुपयोंका लाभ होता है, तो करोड़ों रुपये बिना समुचित लाभके ही देशसे बाहर चले जाते हैं। अतः मैं फिर कहता हूँ कि हमें असन्तोष- का प्रचार करना ही नहीं है। आम जनता इस प्रणालीको जितना बुरा मानने लगी है, अब हम उसे उससे और ज्यादा बुरा रँगकर नहीं बता सकते । अब हमें केवल लोगोंको उसके नाशका उपाय बतानेकी आवश्यकता है और वह मार्ग है आत्मशुद्धिका । यदि हम सरकारको शराब न पीने तथा घरमें चरखा रखनेको अपराध माननेपर मजबूर कर दें तो हम सरकारको बड़ी ही असुविधाजनक स्थितिमें डाल देंगे। यह