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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


तात्पर्य राजनैतिक प्रदर्शनको अभिव्यक्ति न समझा जाये, बल्कि यह माना जाये कि भारत आत्म-ज्ञानके अनुसन्धानका संकल्प कर चुका है। मैं आप लोगोंसे कल और पूरे सप्ताह भर यह कहता रहूँगा कि ईर्ष्या और वैमनस्यका प्रत्येक विचार, सरकारके किसी भी सदस्यके विरुद्ध, चाहे वह अंग्रेज हो अथवा भारतीय, अपने दिलोंसे निकाल दिया जाये ।

डर, जो हमारे अन्दर भरा हुआ है, पहला पाप हैं। हम अंग्रेजोंसे डरते हैं, हम जापानियोंसे डरते हैं तथा परमात्माके सिवाय प्रत्येकसे डरते हैं। विश्वास कीजिए कि केवल ऐसा ही मनुष्य, जो परमात्मा और स्वयं अपनेमें विश्वास नहीं रखता, मनुष्य- से डरता है। दूसरा बड़ा पाप जो भारतके खिलाफ, मानवसमाजके खिलाफ तथा पर- मात्माके खिलाफ किया गया है वह है चरखेका विनाश । मैं चाहता हूँ कि सारे देशको इस बातका विश्वास दिला पाता कि हमारे इसी बड़े पापके कारण जिसे मैं राष्ट्रीय पाप कहता हूँ, भारत पदच्युत हुआ और एक गुलाम राष्ट्र बना। हम इसका, कमसे- कम, प्रायश्चित्त यही कर सकते हैं कि हम विलायती कपड़ेका एक धागा भी उपयोग में न लायें। इसलिए मैं मसूलीपट्टमके प्रत्येक नर-नारीसे कहता हूँ कि वह कलसे विलायती वस्त्र न पहननेका दृढ़ संकल्प कर ले और केवल अपने द्वारा तैयार किया गया कपड़ा पहने; दूसरोंके द्वारा तैयार किया गया कपड़ा न पहने। हमारा तीसरा पाप हमारी स्वार्थपरता है। हम केवल अपने ही बारेमें सोचते-विचारते हैं, देशके बारेमें नहीं । हम अपने परिवारसे आगे बढ़कर बहुत हुआ तो गाँव या नगर तक ही पहुँच पाये हैं। हम केवल अपने ही लिए जीना छोड़ दें; भारतके लिए जीना आरम्भ कर हिन्दुओं तथा मुसलमानोंके बीच फूट हमारा चौथा पाप है। हमने अपनी सीमा हिमालय से लेकर रामेश्वरतक और बंगालसे सिन्धतक मान रखी है। हिन्दू-मुस्लिम एकता एक निर्विवाद तथ्य है। इसलिए अभी हमें जिस कार्यक्रमपर अपनी शक्तियाँ केन्द्रीभूत करनी हैं वह चरखा ही है। मैं अब आप लोगोंसे उन बातोंपर विचार करनेके लिए कहूँगा जिनपर विचार करनेके लिए अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीने कहा है — तिलक स्वराज्य कोषके लिए एक करोड़ रुपये इकट्ठा करना । आन्ध्र प्रदेशके हिस्से में सात लाख रुपये आते हैं। मैं आशा करता हूँ कि मसूलीपट्टमके पुरुष तथा स्त्रियाँ इस कोषके लिए यथासम्भव अधिकसे-अधिक धन प्रदान करेंगे। अभी कुछ देरमें स्वयंसेवक लोग आपके पास पहुँचेंगे। मसूलीपट्टमकी कई बहनें मेरे पास आ चुकी हैं तथा आभूषण और धन भेंट कर चुकी हैं। मुझे आशा है कि मसूलीपट्टमका चन्दा अन्य स्थानोंसे कम न होगा |

[ अंग्रेजीसे ]

हिन्दू, ८-४-१९२१